नोआह चोम्स्की के बारे में आपने जरूर पढ़ा-सुना होगा। नहीं पढ़ा सुना तो यह आप अभ्यर्थियों के लिए एक 'अपराध' है। परिचय इनका बस इतना है कि यह शायद दुनिया के सबसे प्रसिद्ध 'भाषाविज्ञानी' और एक 'दार्शनिक' हैं। इसके अलावा ये क्या-क्या हैं और कितने देशों की कितने सरकारों ने और कितने विश्वविद्यालयों ने कितनी डिग्रियां और सम्मान इन्हें दिए हैं, इनकी गणना करना श्रमसाध्य है। 'बिहेवियर साइकोलॉजी' जैसी मनोविज्ञान की विधा को इन्होंने अपने बल पर भूतकाल की बात बना दिया और अमेरिका में एक 'नए लेफ्ट' के अगुआ बने। सीआईए ने वर्षों तक इनके ऊपर निगरानी रखी और जब उसे लगा कि ये फ़ेडरल नियमो के विरुद्ध है तब जाकर उसने निगरानी बंद की। मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में आप भाषाविज्ञान के प्रोफेसर हैं और सादे कपड़ों में पुलिस इनकी रक्षा करती है यद्यपि इन्हें अमेरिका कभी पसंद नहीं रहा।
मैंने चोम्स्की को पढ़ा है। पढ़ा भी सोशल साइंस और अर्थशास्त्र के संदर्भ में। एक भाषाविज्ञानी इन पर कैसे टिप्पणी कर सकता है, आप सोचते होंगे लेकिन ये एक पोलिटिकल एक्टिविस्ट वर्ष 1960 से ही रहे हैं और आँख-कान खुली रखते हैं तो इन्हें बातें पता है, भले ही डिग्री ना हो। कहते भी हैं कि इन बातों को कोई भी साधारण मेधा वाला व्यक्ति भी समझ सकता है। जैसे कि एक बात: अमेरिका जब तक मैन्युफैक्चरिंग इकॉनमी था, तब तक वहाँ बेरोजगारी की समस्या ना के बराबर थी लेकिन आज वह एक 'फाइनेंसियल' इकॉनमी बन चुका है जहां इंसानों के हाथ नहीं, दिमाग काम करते हैं और एक दिमाग कई इंसानों के हाथों के बराबर होता है। चोम्स्की ने अपने सामने अमेरिका के गौरव 'जनरल इलेक्ट्रिक' जैसी कंपनी को एक 'टू बिग टू फैल' फाइनेंसियल कंपनी बनते देखा और आज वो इस बात से दुखी होते हैं कि अमेरिका ने मैन्युफैक्चरिंग सिरमौर का तमगा चीन को खुशी खुशी दे दिया। अमेरिका के एलीट वर्ग की समृद्धि में कमी नहीं आयी लेकिन माध्यम वर्ग को बहुत चोट पहुंची। आपने 2008 की अमेरिकन मंदी के बारे में पढ़ा सुना होगा ही। 'टू बिग टू फैल' कंपनीज का रिफरेन्स वहीं से उठाया गया है। लेहमन ब्रदर्स, बेयर स्टर्न्स, सिटीग्रुप और अमेरिकन इन्शुरन्स ग्रुप ऐसी कंपनीज के जगप्रसिद्ध उदाहरण रहे हैं।
तो बात 'आय असमानता' की ही हो रही है जिसका उल्लेख ऑक्सफेम की रिपोर्ट हर वर्ष करती है कि वेल्थ का कंसन्ट्रेशन सुपर वेल्थी, 1% या 0.1% जनसंख्या के पास ही है और बाकी लोग धूल के फूल बने हुए हैं। चोम्स्की के ये नागवार गुजरता है। फिर बात आती है कि वेल्थ कंसंट्रेशन मतलब कि पावर कंसन्ट्रेशन जोकि पॉलिटिकल विल पावर को अपने हाथों कमज़ोर करता है और सरकार कॉर्पोरेट टैक्स घटाकर कॉर्पोरेट हॉउसेस का उल्लू सीधा करती है। 60 कि दशक में जब रूज़वेल्ट अमेरिकी राष्ट्रपति थे, उस वक़्त अमेरिका में कई सारी वर्कर्स यूनियन थी जोकि रीगन के समय तक आते-आते खत्म हो गयी। रूज़वेल्ट वर्कर्स से सहानुभूति रखते थे और उनसे आंदोलित रहने को कहते थे ताकि वो कांग्रेस को कन्विंस कर सकें कि यह एक जरूरी मुद्दा है। निक्सन, शायद मॉडर्न अमेरिका के सबसे विवादित राष्ट्रपतियों में से एक, लेकिन उन्होंने भी वर्कर्स फाइनेंसियल और हेल्थ सिक्योरिटी पर कई सारे बिल पास किये। वहीं रीगन ने उनपर डंडे बरसवाये और आज अमेरिका में केवल 3% इंडस्ट्रीज की वर्कर यूनियन है। यह सब समझने में क्या बहुत दिमाग लगा?
'अमेरिकन ड्रीम' एक प्रसिद्ध 'अनालॉजी' है। इसके पीछे पूरी दुनिया लालायित है क्योंकि चोम्स्की बताते हैं कि अमेरिका में 1930 के दशक में भी, जब वहां भयंकर आर्थिक मंदी थी, लोग आशान्वित थे कि आगे आने वाला समय बेहतर होगा। एक अश्वेत मजदूर भी आशान्वित था कि उसकी जॉब में प्रमोशन होगी, उसका एक घर होगा और उसके बच्चों को किसी भी प्रकार कॉलेज एजुकेशन मिलेगी। अमेरिका में कॉलेज एजुकेशन महंगी है, अपने यहां का BA, B. Sc. B. Com जैसा उसे समझने की भूल ना करें लेकिन आज के ट्रम्प के अमेरिका या मोदी के भारत में (चोम्स्की के शब्द) में वह आशावाद नदारद है। दोनों राष्ट्राध्यक्ष 'रोजगार-मुक्त राष्ट्रवाद' की बात कर रहे जिससे आर्थिक समृद्धि आने से रही। आज का 'अमेरिकन ड्रीम' मृगतृष्णा है और इसी मुद्दे पर एक डॉक्यूमेंट्री 2018 में बनी 'रेक्विम ऑफ एन अमेरिकन ड्रीम' जिसमें चोम्स्की के आज के 10 नए आर्थिक सिद्धांतों पर विचार रखे गए हैं। पूरी फिल्म में केवल चोम्स्की बात करते दिखते हैं और साथ मे कुछ पुरानी वीडियो क्लिपिंग्स। फ़िल्म अगर एक्सेस कर सकें तो आधी इकोनॉमिक्स (व्यवहारिक वाली) 70 मिनट में ही सीख जाएंगे और एक ऐसे आदमी से जिसके पास अर्थशास्त्र की कोई डिग्री नहीं है।
इन मुद्दों पर विचार करें और ऐसे विचारकों को अपने फ्री-टाइम में पढ़ने-जानने का शौक पालें। बहुत ही रुचिकर लगेगा।
मैंने चोम्स्की को पढ़ा है। पढ़ा भी सोशल साइंस और अर्थशास्त्र के संदर्भ में। एक भाषाविज्ञानी इन पर कैसे टिप्पणी कर सकता है, आप सोचते होंगे लेकिन ये एक पोलिटिकल एक्टिविस्ट वर्ष 1960 से ही रहे हैं और आँख-कान खुली रखते हैं तो इन्हें बातें पता है, भले ही डिग्री ना हो। कहते भी हैं कि इन बातों को कोई भी साधारण मेधा वाला व्यक्ति भी समझ सकता है। जैसे कि एक बात: अमेरिका जब तक मैन्युफैक्चरिंग इकॉनमी था, तब तक वहाँ बेरोजगारी की समस्या ना के बराबर थी लेकिन आज वह एक 'फाइनेंसियल' इकॉनमी बन चुका है जहां इंसानों के हाथ नहीं, दिमाग काम करते हैं और एक दिमाग कई इंसानों के हाथों के बराबर होता है। चोम्स्की ने अपने सामने अमेरिका के गौरव 'जनरल इलेक्ट्रिक' जैसी कंपनी को एक 'टू बिग टू फैल' फाइनेंसियल कंपनी बनते देखा और आज वो इस बात से दुखी होते हैं कि अमेरिका ने मैन्युफैक्चरिंग सिरमौर का तमगा चीन को खुशी खुशी दे दिया। अमेरिका के एलीट वर्ग की समृद्धि में कमी नहीं आयी लेकिन माध्यम वर्ग को बहुत चोट पहुंची। आपने 2008 की अमेरिकन मंदी के बारे में पढ़ा सुना होगा ही। 'टू बिग टू फैल' कंपनीज का रिफरेन्स वहीं से उठाया गया है। लेहमन ब्रदर्स, बेयर स्टर्न्स, सिटीग्रुप और अमेरिकन इन्शुरन्स ग्रुप ऐसी कंपनीज के जगप्रसिद्ध उदाहरण रहे हैं।
तो बात 'आय असमानता' की ही हो रही है जिसका उल्लेख ऑक्सफेम की रिपोर्ट हर वर्ष करती है कि वेल्थ का कंसन्ट्रेशन सुपर वेल्थी, 1% या 0.1% जनसंख्या के पास ही है और बाकी लोग धूल के फूल बने हुए हैं। चोम्स्की के ये नागवार गुजरता है। फिर बात आती है कि वेल्थ कंसंट्रेशन मतलब कि पावर कंसन्ट्रेशन जोकि पॉलिटिकल विल पावर को अपने हाथों कमज़ोर करता है और सरकार कॉर्पोरेट टैक्स घटाकर कॉर्पोरेट हॉउसेस का उल्लू सीधा करती है। 60 कि दशक में जब रूज़वेल्ट अमेरिकी राष्ट्रपति थे, उस वक़्त अमेरिका में कई सारी वर्कर्स यूनियन थी जोकि रीगन के समय तक आते-आते खत्म हो गयी। रूज़वेल्ट वर्कर्स से सहानुभूति रखते थे और उनसे आंदोलित रहने को कहते थे ताकि वो कांग्रेस को कन्विंस कर सकें कि यह एक जरूरी मुद्दा है। निक्सन, शायद मॉडर्न अमेरिका के सबसे विवादित राष्ट्रपतियों में से एक, लेकिन उन्होंने भी वर्कर्स फाइनेंसियल और हेल्थ सिक्योरिटी पर कई सारे बिल पास किये। वहीं रीगन ने उनपर डंडे बरसवाये और आज अमेरिका में केवल 3% इंडस्ट्रीज की वर्कर यूनियन है। यह सब समझने में क्या बहुत दिमाग लगा?
'अमेरिकन ड्रीम' एक प्रसिद्ध 'अनालॉजी' है। इसके पीछे पूरी दुनिया लालायित है क्योंकि चोम्स्की बताते हैं कि अमेरिका में 1930 के दशक में भी, जब वहां भयंकर आर्थिक मंदी थी, लोग आशान्वित थे कि आगे आने वाला समय बेहतर होगा। एक अश्वेत मजदूर भी आशान्वित था कि उसकी जॉब में प्रमोशन होगी, उसका एक घर होगा और उसके बच्चों को किसी भी प्रकार कॉलेज एजुकेशन मिलेगी। अमेरिका में कॉलेज एजुकेशन महंगी है, अपने यहां का BA, B. Sc. B. Com जैसा उसे समझने की भूल ना करें लेकिन आज के ट्रम्प के अमेरिका या मोदी के भारत में (चोम्स्की के शब्द) में वह आशावाद नदारद है। दोनों राष्ट्राध्यक्ष 'रोजगार-मुक्त राष्ट्रवाद' की बात कर रहे जिससे आर्थिक समृद्धि आने से रही। आज का 'अमेरिकन ड्रीम' मृगतृष्णा है और इसी मुद्दे पर एक डॉक्यूमेंट्री 2018 में बनी 'रेक्विम ऑफ एन अमेरिकन ड्रीम' जिसमें चोम्स्की के आज के 10 नए आर्थिक सिद्धांतों पर विचार रखे गए हैं। पूरी फिल्म में केवल चोम्स्की बात करते दिखते हैं और साथ मे कुछ पुरानी वीडियो क्लिपिंग्स। फ़िल्म अगर एक्सेस कर सकें तो आधी इकोनॉमिक्स (व्यवहारिक वाली) 70 मिनट में ही सीख जाएंगे और एक ऐसे आदमी से जिसके पास अर्थशास्त्र की कोई डिग्री नहीं है।
इन मुद्दों पर विचार करें और ऐसे विचारकों को अपने फ्री-टाइम में पढ़ने-जानने का शौक पालें। बहुत ही रुचिकर लगेगा।
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