मेरे दो बेहद खास लोग दो बच्चियों के माता-पिता हैं। वे बेहद डरे हुए और परेशान हैं। मेरी आज और कल दोनों से बात हुई। मैं स्लोगन्स पोस्ट या प्रोफाइल पिक्चर चेंज करके क्रांति लाने में विश्वास नहीं करता क्योंकि मैं ऐसा खूब कर चुका हूँ और यह सब केवल अपने को दिलासा देने के अलावा कुछ नहीं है। लेकिन मैं ऐसे लोगों की इज़्ज़त करता हूँ क्योंकि वे संवेदनशील हैं, जागरूक हैं। लाल रंग का खून अभी भी दौड़ता है उनकी धमनियों में और वो खौलता भी है। ज़िंदा हैं वो। अभी कुछ दिनों एक परीक्षा की तैयारी के सिलसिले में पढ़ने को मिला कि हिंदुस्तान में 3 करोड़ जानवर हैं। जानवर संवेदनशील होते हैं। मैं उन्हें जानवर नहीं कहूँगा। यह जो कठुआ, उन्नाव, सहरसा, सूरत, लखनऊ और दिल्ली वाले घटनाक्रम में लिप्त हैं, ये जानवर हैं क्योंकि एक समय पर इनके कुछ प्रमुख अंगों ने काम करना बंद कर दिया और ये चौपायों की मूक-बधिर श्रेणी में आ गए। उन चौपायों की बेइज़्ज़ती हो गयी साहब। भगवान ने इन दोपायों को कुछ जरूरी चारित्रिक विशेषताएं और दिमाग दिया हुआ है। अगर ये इनका उपयोग करना बंद कर दें तो ये जानवर हैं। दूसरा मुद्दा, हिन्दू-मुसलमान। बिहार, असम ...