कल जॉन होटन का आर्टिकल पढ़ रहा था क्रिकइंफो पर। जॉन मार्क रामप्रकाश के सबसे बड़े प्रशंसक रहे हैं और लेख उन्हीं के ऊपर था। मार्क रामप्रकाश का कैरियर तमाम विरोधाभासों से भरा हुआ था। लेकिन क्यों? क्या कमी रह गयी कि रामप्रकाश वैसे महान नहीं बन पाए जैसे सबने उनके लिए कल्पना की थी? 25 साल पहले विंडीज़ के खिलाफ उन्होंने डेब्यू किया और उससे पहले ही इंग्लिश क्रिकेट में उनके शान में कसीदे पढ़े जा रहे थे। इंग्लिश क्रिकेट का अगला सुपरस्टार। डेब्यू हुआ, कुछ दिनों बाद पहला शतक भी लगा और फिर टीम से अंदर-बाहर होने का सिलसिला। उस नैसर्गिक प्रतिभा के धनी खिलाड़ी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दिक्कत कहाँ हो रही है रन बनाने में? घरेलू क्रिकेट में तो सब ठीक लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सभी कुछ गड़बड़। उनसे ज्यादा निराश इंग्लिश क्रिकेट प्रशासन और उनके समर्थक। बॉथम, गूच, गावर, गैटिंग, सब जा चुके थे या बस जाने ही वाले थे। Atherton, स्टीवर्ट, गॉफ, हेडली आ चुके थे और ठीकठाक खेल भी रहे थे। थोर्प सबसे अच्छे बल्लेबाज़ थे लेकिन इस तमगे के लिए दो खिलाड़ी टीम में लाये गए थे और दुर्भाग्य से दोनों फैल हो गए।
दूसरे थे, ग्रीम हिक। जी, उसी मैच में डेब्यू था जिसमें रामप्रकाश आये थे। हिक मूलतः ज़िम्बाब्वे से थे लेकिन वहाँ की सरकार की रंगभेदी नीतियों के कारण इंग्लैंड से कैरियर शुरू किया। टेस्ट मैच में प्रदर्शन करना एक अलग ही विषय है और आप बहुत सारे खिलाड़ियों का नाम अपनी अंगुलियों पर गिन सकते हैं जिन्होंने अपने टैलेंट को रन स्कोरिंग में ट्रांसलेट नहीं किया। मैं नाम नहीं लूँगा लेकिन आपकी लिस्ट तैयार होगी।
आपको लेकिन इस बात का भी आश्चर्य होगा कि रामप्रकाश और हिक एक ऐसे रिकॉर्ड के साथ रिटायर हुए जिसकी कल्पना करना ही अब मुश्किल होगा। ये दोनों अंतिम खिलाड़ी हैं जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में शतकों का शतक पूरा किया। रामप्रकाश ने 2007 में और हिक ने 2008 में। ये क्रिकेट इतिहास के मात्र 25वे और 26वे ऐसे खिलाड़ी हैं। लोग अब प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना ही नहीं चाहते और टेस्ट मैच तो ऐसे लोगों की जद से बहुत बाहर की बात है। एक दो शतक आजकल के नए खिलाड़ी लगा देते हैं तो वर्कलोड की बात करने लगते हैं लेकिन इन खिलाड़ियों की लगन, निष्ठा और प्रतिभा अनुकरणीय रहेगी। आज रामप्रकाश इंग्लिश टीम के बैटिंग कोच हैं और हिक ऑस्ट्रेलियाई टीम के। दोनों की प्रतिभा आंकड़ों में तो सामने नहीं आ पाई लेकिन जो लोग जानते समझते हैं, उन्हें पता है कि इन दोनों ने जो किया, अब कोई नहीं कर पायेगा।
यह आर्टिकल मुझे इंग्लिश में लिखना चाहिए था लेकिन इसकी अपील ऐसी थी कि मुझे हिंदी में लिखना पड़ा। शायद कड़ी मेहनत कभी भी बगैर अपना इनाम लिए नहीं लौटती और यही शिक्षा हमें इन दोनों 'महान' क्रिकेटर्स के कैरियर से मिलती है।
दूसरे थे, ग्रीम हिक। जी, उसी मैच में डेब्यू था जिसमें रामप्रकाश आये थे। हिक मूलतः ज़िम्बाब्वे से थे लेकिन वहाँ की सरकार की रंगभेदी नीतियों के कारण इंग्लैंड से कैरियर शुरू किया। टेस्ट मैच में प्रदर्शन करना एक अलग ही विषय है और आप बहुत सारे खिलाड़ियों का नाम अपनी अंगुलियों पर गिन सकते हैं जिन्होंने अपने टैलेंट को रन स्कोरिंग में ट्रांसलेट नहीं किया। मैं नाम नहीं लूँगा लेकिन आपकी लिस्ट तैयार होगी।
आपको लेकिन इस बात का भी आश्चर्य होगा कि रामप्रकाश और हिक एक ऐसे रिकॉर्ड के साथ रिटायर हुए जिसकी कल्पना करना ही अब मुश्किल होगा। ये दोनों अंतिम खिलाड़ी हैं जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में शतकों का शतक पूरा किया। रामप्रकाश ने 2007 में और हिक ने 2008 में। ये क्रिकेट इतिहास के मात्र 25वे और 26वे ऐसे खिलाड़ी हैं। लोग अब प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना ही नहीं चाहते और टेस्ट मैच तो ऐसे लोगों की जद से बहुत बाहर की बात है। एक दो शतक आजकल के नए खिलाड़ी लगा देते हैं तो वर्कलोड की बात करने लगते हैं लेकिन इन खिलाड़ियों की लगन, निष्ठा और प्रतिभा अनुकरणीय रहेगी। आज रामप्रकाश इंग्लिश टीम के बैटिंग कोच हैं और हिक ऑस्ट्रेलियाई टीम के। दोनों की प्रतिभा आंकड़ों में तो सामने नहीं आ पाई लेकिन जो लोग जानते समझते हैं, उन्हें पता है कि इन दोनों ने जो किया, अब कोई नहीं कर पायेगा।
यह आर्टिकल मुझे इंग्लिश में लिखना चाहिए था लेकिन इसकी अपील ऐसी थी कि मुझे हिंदी में लिखना पड़ा। शायद कड़ी मेहनत कभी भी बगैर अपना इनाम लिए नहीं लौटती और यही शिक्षा हमें इन दोनों 'महान' क्रिकेटर्स के कैरियर से मिलती है।
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