मेरे दो बेहद खास लोग दो बच्चियों के माता-पिता हैं। वे बेहद डरे हुए और परेशान हैं। मेरी आज और कल दोनों से बात हुई। मैं स्लोगन्स पोस्ट या प्रोफाइल पिक्चर चेंज करके क्रांति लाने में विश्वास नहीं करता क्योंकि मैं ऐसा खूब कर चुका हूँ और यह सब केवल अपने को दिलासा देने के अलावा कुछ नहीं है। लेकिन मैं ऐसे लोगों की इज़्ज़त करता हूँ क्योंकि वे संवेदनशील हैं, जागरूक हैं। लाल रंग का खून अभी भी दौड़ता है उनकी धमनियों में और वो खौलता भी है। ज़िंदा हैं वो। अभी कुछ दिनों एक परीक्षा की तैयारी के सिलसिले में पढ़ने को मिला कि हिंदुस्तान में 3 करोड़ जानवर हैं। जानवर संवेदनशील होते हैं। मैं उन्हें जानवर नहीं कहूँगा। यह जो कठुआ, उन्नाव, सहरसा, सूरत, लखनऊ और दिल्ली वाले घटनाक्रम में लिप्त हैं, ये जानवर हैं क्योंकि एक समय पर इनके कुछ प्रमुख अंगों ने काम करना बंद कर दिया और ये चौपायों की मूक-बधिर श्रेणी में आ गए। उन चौपायों की बेइज़्ज़ती हो गयी साहब। भगवान ने इन दोपायों को कुछ जरूरी चारित्रिक विशेषताएं और दिमाग दिया हुआ है। अगर ये इनका उपयोग करना बंद कर दें तो ये जानवर हैं।
दूसरा मुद्दा, हिन्दू-मुसलमान। बिहार, असम क्यों नहीं और कठुआ ही क्यों? मैं एक टियर-3 शहर में रहता हूँ और आये दिन लोकल अखबारों में बाल यौन शोषण की 3-4 खबरें पढ़ता हूँ। उनको मीडिया कवरेज मिल जाये तो वे भी राष्ट्रीय खबरें बन जाएं। मुद्दा समझ रहे हैं ना आप? समस्या समाज के छोटे से छोटे तबके और भूगोल तक पहुंच गई है। हिन्दू, मुसलमान, असम, बिहार नहीं भाई, दिमाग में समस्या है। क्यों है, इसपर जोक, चुटकुले बनाये जा रहे हैं विदेशों में और कुछ गंभीर लोग शोध कर रहे हैं स्वदेश में। मनोवैज्ञानिक समस्या है लेकिन क्या सामाजिक नहीं है? जिन खास लोगों की बात की है शुरुआत में, उनमें से एक तो देश छोड़कर जाने की तैयारी में है। उसे मैं कौन सी दिलासा देकर रोकूँ? आर्थिक वृद्धि तो चमकीली है लेकिन सामाजिक दशा तो रोज़ एक स्याह रंग ओढ़े ले रही है। मैं खुद डरा हुआ हूँ। बच्चे सबके घरों में हैं। आपको भी डर लगना चाहिए। अभी आप बेचैन आसिफा के लिए हैं लेकिन आपका बच्चा भी आपसे उम्मीदें रखता है। सत्यमेव जयते जिसे आमिर खान प्रस्तुत करते थे, ने सबसे पहले नेशनल टेलीविजन पर इस समस्या को रखा था। मैं गुड़गांव में था उस समय और अंदर से कांप गया था। आंखों से दो आँसू भी गिरे थे। मैं और आप उस समय भी असहाय थे और आज भी हैं।
मैं आसिफा या उन्नाव या किसी और के बारे में कुछ नहीं लिखना चाहता था। मुझे पता था कि दो चार लोग पढ़ेंगे, लाइक करेंगे और आगे बढ़ जाएंगे। क्रांति तो आने से रही लेकिन कुछ लोगों ने कहा। मैंने सोचा कि आखिर क्यों कहा? डर, संवेदना, समाज और पीड़ा। शायद ये कारण थे। उनका कहा हो गया, अब आगे क्या? विचार करिये और संवेदनशील बने रहिये। जरूरी है......
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