हम इतिहास के छात्र हैं। सर विंस्टन चर्चिल एक ऐतिहासिक शख्सियत हैं। यह आर्टिकल चर्चिल को एक नस्लवादी और युद्धप्रिय नेता घोषित करता है। बाकायादा स्रोत भी हैं सबूतों के लिए। चर्चिल ने गांधी जी को एक नंगा फकीर कहा था जिसका उल्लेख हमारा परीक्षा आयोग कई बार कर चुका है। चर्चिल भारतीयों से भी नफरत करते थे, यह भी सही है लेकिन चर्चिल को एक और बात से भी घृणा थी और वह थी, कमजोर नेतृत्व क्षमता और इच्छाशक्ति। द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले चर्चिल ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली की भारतीय नीति के मुखर आलोचक थे। यह लेख खुद ही कहता है कि वह नहीं चाहते थे कि भारतीयों का नेतृत्व एक ऐसी शक्ति करे जो कि भ्रष्टाचारी ना हो। फिर चर्चिल को लोग बंगाल अकाल के लिए भी कोसते हैं। यह सही है क्योंकि इसका उल्लेख मुझे इंग्लैंड के तत्कालीन शासक की एटली की वार्तालाप में मिला जहाँ वो चर्चिल की 5-6 बेहद विवादित नीतियों का उल्लेख करते हैं और उनकी भारतीय नीति उसमे से प्रथम रही है।
यह वार्तालाप उस समय हुआ था जब नाज़ी सेना बेल्जियम और हॉलैंड को जीतकर फ्रांस की सीमा तक पहुंच गई थी और चूंकि ब्रिटेन उस समय यूरोप का सबसे शक्तिशाली देश था और हिटलर की कम्युनिस्ट विचारधारा का धुर विरोधी तो हिटलर का अगला कोपभाजन उसी को बनना था। ऐसे मुश्किल हालात में इंग्लैंड को एक मजबूत नेतृत्व और राष्ट्रीय एकता की जरूरत थी और ब्रिटेन की मुख्य विरोधी पार्टी ने सत्ताधारी दल को केवल एक शर्त के ऊपर समर्थन देना स्वीकार किया कि वो चर्चिल को एटली की जगह प्रधानमंत्री घोषित करें। एटली एक सम्मानित नेता थे और उनको तत्कालीन इंग्लैंड शासक का समर्थन भी था लेकिन प्रचंड विरोध के सामने उन्हें झुकना पड़ा। चर्चिल प्रधानमंत्री बने, हिटलर का मजबूती से सामना किया, फ्रांस को उससे बचाया और इतिहास बनाया।
यहाँ यह बात समझनी जरूरी है कि हम इतिहास को भूतकाल के चश्मे से देखें, उस समय के देशकाल वातावरण के अनुसार। बेंजामिन डेजरायली ने भारत को इंग्लैंड के ताज का सबसे चमकता माणिक्य बताया था। इंग्लैंड के लिए भारत का सर्वाधिक महत्व था। उन्होंने हमारा शोषण किया लेकिन क्या इसके लिए चर्चिल ज़िम्मेदार थे, बिल्कुल नहीं। वो केवल पार्टीलाइन पर चल रहे थे और जब बंगाल में भुखमरी से लाखों मरे तो उन्हें अपने देश में ही लताड़ पड़ी जैसे कि जनरल डायर को जलियावाला हत्याकांड के बाद। लेकिन जब उसी चर्चिल को अपने देश के लिए खड़ा होने के लिए बोला गया और वह भी दुनिया के सबसे बड़े और निर्दयी तानाशाह के खिलाफ तो उन्होंने अपनी उपयोगिता और चारित्रिक मजबूती साबित की। इतिहास उनका मूल्यांकन हिटलर से लोहा लेने के लिए करता है और पूरा विश्व इसके लिए उन्हें सम्मानित करता है।
अब रही बात इस फ़िल्म की तो भले लोगों को यह समझना चाहिए कि यह एक क्रिएटिव फील्ड है जहां नाटकीयता का समावेश जरूरी है। फिर जो राइट, इस फ़िल्म के निर्देशक ने शुरुआत से ही इसे सेमी-फिक्शन के रूप में बनाया मतलब आधा सत्य, आधी कल्पनाशीलता। फिर हमें इसके विषयवस्तु से परेशान क्यों होना चाहिए?
तीसरी बात: गैरी ओल्डमैंन को चर्चिल का किरदार निभाने के लिए कहा गया। बंदे ने उसे आत्मसात किया। पिछले साल की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेन्स। अब उन्होंने अपने निजी जीवन में कुछ किया जो कुछ को गड़बड़ लगा लेकिन वह आरोप कभी सिद्ध नहीं हुए। अब आप किसे सच मानेंगे? दूसरी बात, अगर आरोप सच हो भी जाते तो उन्होंने इस फ़िल्म में जैसी परफॉर्मेंस दी है, क्या उसे कभी भुलाया जा सकता था, बिल्कुल नहीं? मुझे कभी एक कलाकार को उसके निजी जीवन से अलग देखने में परेशानी नहीं हुई, बाकियों को होती है। आप भी सही हो सकते हैं बशर्ते आपके पास ठोस सबूत हों। अतः ऐसे आर्टिकल्स को समर्थन देने से पहले सिक्के के दोनों पहलुओं को ध्यान से देखा करें और फिर तार्किकता के साथ अपना पक्ष रखा करें।
URL: https://rightlog.in/2018/03/hollywood-churchill-india-01/
यह वार्तालाप उस समय हुआ था जब नाज़ी सेना बेल्जियम और हॉलैंड को जीतकर फ्रांस की सीमा तक पहुंच गई थी और चूंकि ब्रिटेन उस समय यूरोप का सबसे शक्तिशाली देश था और हिटलर की कम्युनिस्ट विचारधारा का धुर विरोधी तो हिटलर का अगला कोपभाजन उसी को बनना था। ऐसे मुश्किल हालात में इंग्लैंड को एक मजबूत नेतृत्व और राष्ट्रीय एकता की जरूरत थी और ब्रिटेन की मुख्य विरोधी पार्टी ने सत्ताधारी दल को केवल एक शर्त के ऊपर समर्थन देना स्वीकार किया कि वो चर्चिल को एटली की जगह प्रधानमंत्री घोषित करें। एटली एक सम्मानित नेता थे और उनको तत्कालीन इंग्लैंड शासक का समर्थन भी था लेकिन प्रचंड विरोध के सामने उन्हें झुकना पड़ा। चर्चिल प्रधानमंत्री बने, हिटलर का मजबूती से सामना किया, फ्रांस को उससे बचाया और इतिहास बनाया।
यहाँ यह बात समझनी जरूरी है कि हम इतिहास को भूतकाल के चश्मे से देखें, उस समय के देशकाल वातावरण के अनुसार। बेंजामिन डेजरायली ने भारत को इंग्लैंड के ताज का सबसे चमकता माणिक्य बताया था। इंग्लैंड के लिए भारत का सर्वाधिक महत्व था। उन्होंने हमारा शोषण किया लेकिन क्या इसके लिए चर्चिल ज़िम्मेदार थे, बिल्कुल नहीं। वो केवल पार्टीलाइन पर चल रहे थे और जब बंगाल में भुखमरी से लाखों मरे तो उन्हें अपने देश में ही लताड़ पड़ी जैसे कि जनरल डायर को जलियावाला हत्याकांड के बाद। लेकिन जब उसी चर्चिल को अपने देश के लिए खड़ा होने के लिए बोला गया और वह भी दुनिया के सबसे बड़े और निर्दयी तानाशाह के खिलाफ तो उन्होंने अपनी उपयोगिता और चारित्रिक मजबूती साबित की। इतिहास उनका मूल्यांकन हिटलर से लोहा लेने के लिए करता है और पूरा विश्व इसके लिए उन्हें सम्मानित करता है।
अब रही बात इस फ़िल्म की तो भले लोगों को यह समझना चाहिए कि यह एक क्रिएटिव फील्ड है जहां नाटकीयता का समावेश जरूरी है। फिर जो राइट, इस फ़िल्म के निर्देशक ने शुरुआत से ही इसे सेमी-फिक्शन के रूप में बनाया मतलब आधा सत्य, आधी कल्पनाशीलता। फिर हमें इसके विषयवस्तु से परेशान क्यों होना चाहिए?
तीसरी बात: गैरी ओल्डमैंन को चर्चिल का किरदार निभाने के लिए कहा गया। बंदे ने उसे आत्मसात किया। पिछले साल की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेन्स। अब उन्होंने अपने निजी जीवन में कुछ किया जो कुछ को गड़बड़ लगा लेकिन वह आरोप कभी सिद्ध नहीं हुए। अब आप किसे सच मानेंगे? दूसरी बात, अगर आरोप सच हो भी जाते तो उन्होंने इस फ़िल्म में जैसी परफॉर्मेंस दी है, क्या उसे कभी भुलाया जा सकता था, बिल्कुल नहीं? मुझे कभी एक कलाकार को उसके निजी जीवन से अलग देखने में परेशानी नहीं हुई, बाकियों को होती है। आप भी सही हो सकते हैं बशर्ते आपके पास ठोस सबूत हों। अतः ऐसे आर्टिकल्स को समर्थन देने से पहले सिक्के के दोनों पहलुओं को ध्यान से देखा करें और फिर तार्किकता के साथ अपना पक्ष रखा करें।
URL: https://rightlog.in/2018/03/hollywood-churchill-india-01/
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