रवीश कुमार ने सरकार की केवल एक दुखती रग पर हाथ रख दिया और आज हिंदी में 'लोकप्रिय' पत्रकारिता के शिखर पर विराजमान हो गए। ऐसा नहीं है कि वो या उनका चैनल दूध के धुले हैं। अब जैसा कि लोग उन्हें या उनके चैनल को सत्ता विरोधी या साम्यवादी बुलाते हैं, उस हिसाब से देखा जाए तो उन्हें पतंजलि के प्रोडक्ट्स का प्रचार नहीं दिखाने चाहिए लेकिन खुलेआम दिखाते हैं या ये कहूँ कि सबसे ज्यादे दिखाते हैं। फिर और भी बहुतेरे मुद्दे हैं जो NDTV को बहुप्रिय बनाने से रोकते हैं लेकिन सरोकारी पत्रकारिता में उनका कोई सानी नहीं।
कल पॉल क्रुगमन जोकि वर्ष 2008 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, ने कहा कि जो प्रगति भारत ने पिछले 30 सालों में अर्जित की है, वो ब्रिटेन ने 150 सालों में की। इसके लिए हम बधाई के पात्र लेकिन उन्होंने आगे की दो प्रमुख चुनौतियाँ गिनाईं। एक बेरोज़गारी और दूसरी, आय असमानता। आय असमानता पर तो हम जैसे छद्म पूँजीवादी देश कुछ नहीं कर सकते। यह महामारी बन गयी है लेकिन बेरोज़गारी में जरूर बहुत कुछ हो सकता है। पॉल ने एक रास्ता सुझाया-मैन्युफैक्चरिंग। सरकारी नौकरी सरकार करोड़ो में सृजित नहीं कर सकती लेकिन अकुशल या अर्धकुशल श्रमिकों के लिए मैन्युफैक्चरिंग एक शानदार विकल्प है। चीन ने यही किया। आज वो मैन्युफैक्चरिंग हब है। उन्होंने भारत को एक अद्भुत और एकलौता उदाहरण बताया जिसने अपनी प्रगति का चालक सेवा क्षेत्र को बनाया। लेकिन सेवा क्षेत्र में आप अकुशल लोगों को प्रवेश नहीं दे सकते। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर जैसी फील्ड में बहुत ही प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है। तो विकल्प आपके, हमारे और सबके सामने है।
यह डेमोग्राफिक डिविडेंड का झुनझुना एक दिन जनसंख्या विस्फोटन का जीता जागता उदाहरण बन जाएगा अगर यह सरकार और आगे की एक दो सरकारें ना चेतीं।
कल पॉल क्रुगमन जोकि वर्ष 2008 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, ने कहा कि जो प्रगति भारत ने पिछले 30 सालों में अर्जित की है, वो ब्रिटेन ने 150 सालों में की। इसके लिए हम बधाई के पात्र लेकिन उन्होंने आगे की दो प्रमुख चुनौतियाँ गिनाईं। एक बेरोज़गारी और दूसरी, आय असमानता। आय असमानता पर तो हम जैसे छद्म पूँजीवादी देश कुछ नहीं कर सकते। यह महामारी बन गयी है लेकिन बेरोज़गारी में जरूर बहुत कुछ हो सकता है। पॉल ने एक रास्ता सुझाया-मैन्युफैक्चरिंग। सरकारी नौकरी सरकार करोड़ो में सृजित नहीं कर सकती लेकिन अकुशल या अर्धकुशल श्रमिकों के लिए मैन्युफैक्चरिंग एक शानदार विकल्प है। चीन ने यही किया। आज वो मैन्युफैक्चरिंग हब है। उन्होंने भारत को एक अद्भुत और एकलौता उदाहरण बताया जिसने अपनी प्रगति का चालक सेवा क्षेत्र को बनाया। लेकिन सेवा क्षेत्र में आप अकुशल लोगों को प्रवेश नहीं दे सकते। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर जैसी फील्ड में बहुत ही प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है। तो विकल्प आपके, हमारे और सबके सामने है।
यह डेमोग्राफिक डिविडेंड का झुनझुना एक दिन जनसंख्या विस्फोटन का जीता जागता उदाहरण बन जाएगा अगर यह सरकार और आगे की एक दो सरकारें ना चेतीं।
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