जैसा कि कुछ दिन पहले मैंने बताया था, मैं अभी स्टीफन हॉकिंग की बेस्टसेलर 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम' पढ़ रहा हूँ और जैसे ही सर की व्याख्या मैंने ब्लैकहोल्स के बारे में पढ़ी, मुझे श्रीनिवास रामानुजन याद आ गए। कैसे? दरअसल रामानुजन ने एक थ्योरम अपने अंतिम दिनों में ईजाद की थी जिसकी मदद से हम एंट्रोपी की गणना कर सकते हैं। किसी बॉडी की ऊर्जा का वह भाग जिसका उपयोग नहीं किया जा सकता, एंट्रोपी कहलाता है। हाकिंग ने यह खोज की कि ब्लैक होल्स भी ऊर्जा के बहुत बड़े स्रोत हैं जोकि रेडिएशन एमिट करते हैं लेकिन उनके अंदर कितनी ज्यादा ऊर्जा समाहित है, इसकी गणना नहीं की जा सकी है। रामानुजन और हाकिंग यहीं एक साथ होते हैं।
रामानुजन की कहानी, मुझे उम्मीद है, आप सबको पता होगी। अगर नहीं है तो ज़रूर पता कर लें। पश्चिमी जगत स्टीफन हॉकिंग, एलन ट्यूरिंग और जॉन नैश के ऊपर गश खाता है लेकिन रामानुजन इन सबमें भी अतिविशिष्ट थे। हिंदुस्तान के पास शायद गणितीय दुनिया का सबसे अनमोल खजाना था जिसे काल ने असमय हमसे छीन लिया लेकिन मात्र 32 वर्ष की आयु में उन्होंने उस दुनिया को जितना दिया, वह आज तक पर्याप्त सिद्ध हो रहा है। रामानुजन का सुप्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जी एच हार्डी के साथ भागीदारी जगतप्रसिद्ध है और हार्डी की बदौलत ही मद्रास का एक भूखा, गरीब क्लर्क विश्व का सर्वाधिक रहस्यमय और प्रखर मेधा का गणितज्ञ बना। रहस्यमय क्यों?
गणित की मुद्रा (करेंसी) होती है 'प्रूफ' या हल। अगर आप किसी समस्या का 'सही' तरीके से हल नहीं ढूंढ पाते तो भले ही आपका अंतिम स्टेप सही हो, लेकिन पूरी क्रियाविधि शक के घेरे में आ जाती है। हार्डी को रामानुजन ने मद्रास से स्कॉलरशिप की व्यवस्था के लिए पत्र लिखा ताकि वे भूखे ना मर जाएं। साथ ही अपने कई सारे प्रूफ और पेपर्स संलग्न कर दिए। हार्डी ने अपने मित्र लिटलवुड (एक और प्रसिद्ध गणितज्ञ) के साथ उन पेपर्स को जांचा और एक निष्कर्ष पर पहुँचे। उनका मानना था कि जो भी उनके सामने है, वो केवल सत्य ही हो सकता है नहीं तो किसी के पास वैसा सोचने की क्षमता ही नहीं हो सकती। दो साल के बाद वे रामानुजन को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ले आए और उसके बाद जो हुआ, वो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। समस्या केवल एक थी कि रामानुजन अद्भुत प्रमेयों और सिद्धांतों को कुछ क्षणों में हार्डी के सामने रख देते थे लेकिन जब हार्डी उनसे उनके हल के बारे में पूछते थे तो उनके पास कोई व्याख्या नहीं रहती थी और हार्डी चूँकि एक पढ़े लिखे और सीखे-सिखाये गए गणितज्ञ थे जिन्हें गणित की करेंसी का पूरा भान था, रामानुजन को उनका हल प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करते थे। रामानुजन की 'औपचारिक' गणितीय शिक्षा के लिए उन्होंने प्रोफेसर लिटलवुड से आग्रह भी किया लेकिन जैसे ही लिटलवुड रामानुजन को कुछ चुनौती भरा सिखाने बैठते, रामानुजन उसके लिए कुछ नए विचार सामने रख देते। हार्डी और लिटलवुड को इस बार पर कभी संदेह नहीं हुआ कि रामानुजन 'गलत' कह रहे लेकिन वे दोनों उन्हीं की भलाई के लिए उनसे हल माँगते थे। उस समय का पश्चिमी जगत वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही सोचता था और रामानुजन कहते थे कि उन्हें जो भी सूझता है, उसके पीछे उनकी कुलदेवी 'नमागिरी' का आशीर्वाद था। उन्होंने एक बार हार्डी को गुस्से में कह भी दिया था कि उनके लिए किसी समीकरण का कोई महत्व नहीं है जबतक कि वह ईश्वर के विचार को अभिव्यक्ति प्रदान नहीं करता। हार्डी घोर नास्तिक थे लेकिन उन्होंने कभी भी रामानुजन को उनकी धार्मिक आस्था के लिए नहीं कोसा।
अपने अंतिम दिनों में रामानुजन ने अपनी कई नोटबुक्स में कई सौ प्रमेयों, मॉड्यूलर फंक्शन, मॉक मॉड्यूलर फंक्शन, जीटा फंक्शन और पार्टीशन नंबर थ्योरी का उल्लेख किया था। उनकी मृत्यु की एक सदी बाद भी पूरे विश्व के मूर्धन्य गणितज्ञ उन नोटबुक्स का अध्ययन कर रहे हैं और यह सिद्ध भी कर चुके हैं कि उन सभी अद्भुत प्रमेयों में से 95% सत्य हैं। रामानुजन के बारे में बाद में विद्वानों ने कहा कि वह इकलौते ऐसे इंसान थे जिन्हें 'अनंत' का ज्ञान था। लोग उन्हें 'टाइम ट्रैवलर' भी कहते हैं। अभी भी 'केन ओनो' जैसे उनके अनुयायी यही जानने की कोशिश कर रहे कि रामानुजन के पास इतनी अप्रतिम मेधा शक्ति और इंट्यूशन कहाँ से आती थी। आज में शायद उनके बारे में करीब सातवीं बार पढ़ रहा था और मुझे यही समझ आया कि यह खोज, यह जिज्ञासा बेकार है। वह इंसान अनंत को जानता था क्योंकि वह ईश्वर का साक्षात्कार कर चुका था और उनकी सारी गणितीय मेधा उसी ईश्वरीय शक्ति का प्रमाण था। आज अगर विज्ञान रामानुजन के हर सिद्धांत और प्रमेय को सही सिद्ध कर रहा तो एक तरीके से वह ईश्वर की सत्ता और उनके अस्तित्व को ही स्वीकार कर रहा और मैं विश्वस्त हूँ कि अगर आज रामानुजन जीवित होते तो मुझसे इत्तेफ़ाक़ रखते।
रामानुजन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक जगत के मध्य की एक मजबूत कड़ी हैं जिन्हें एक गणितज्ञ के रूप में पूरे विश्व का आदर हासिल है लेकिन उनकी आध्यात्मिकता और ईश्वरीय तत्व को वैज्ञानिक वर्ग सुविधाजनक तरीके से नज़रंदाज़ करता रहा है। शायद समय आ गया है कि रामानुजन का पुनर्मूल्यांकन किया जाए और नाकि एक गणितज्ञ के रूप में वरन एक योगी के रूप में.....
रामानुजन की कहानी, मुझे उम्मीद है, आप सबको पता होगी। अगर नहीं है तो ज़रूर पता कर लें। पश्चिमी जगत स्टीफन हॉकिंग, एलन ट्यूरिंग और जॉन नैश के ऊपर गश खाता है लेकिन रामानुजन इन सबमें भी अतिविशिष्ट थे। हिंदुस्तान के पास शायद गणितीय दुनिया का सबसे अनमोल खजाना था जिसे काल ने असमय हमसे छीन लिया लेकिन मात्र 32 वर्ष की आयु में उन्होंने उस दुनिया को जितना दिया, वह आज तक पर्याप्त सिद्ध हो रहा है। रामानुजन का सुप्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जी एच हार्डी के साथ भागीदारी जगतप्रसिद्ध है और हार्डी की बदौलत ही मद्रास का एक भूखा, गरीब क्लर्क विश्व का सर्वाधिक रहस्यमय और प्रखर मेधा का गणितज्ञ बना। रहस्यमय क्यों?
गणित की मुद्रा (करेंसी) होती है 'प्रूफ' या हल। अगर आप किसी समस्या का 'सही' तरीके से हल नहीं ढूंढ पाते तो भले ही आपका अंतिम स्टेप सही हो, लेकिन पूरी क्रियाविधि शक के घेरे में आ जाती है। हार्डी को रामानुजन ने मद्रास से स्कॉलरशिप की व्यवस्था के लिए पत्र लिखा ताकि वे भूखे ना मर जाएं। साथ ही अपने कई सारे प्रूफ और पेपर्स संलग्न कर दिए। हार्डी ने अपने मित्र लिटलवुड (एक और प्रसिद्ध गणितज्ञ) के साथ उन पेपर्स को जांचा और एक निष्कर्ष पर पहुँचे। उनका मानना था कि जो भी उनके सामने है, वो केवल सत्य ही हो सकता है नहीं तो किसी के पास वैसा सोचने की क्षमता ही नहीं हो सकती। दो साल के बाद वे रामानुजन को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ले आए और उसके बाद जो हुआ, वो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। समस्या केवल एक थी कि रामानुजन अद्भुत प्रमेयों और सिद्धांतों को कुछ क्षणों में हार्डी के सामने रख देते थे लेकिन जब हार्डी उनसे उनके हल के बारे में पूछते थे तो उनके पास कोई व्याख्या नहीं रहती थी और हार्डी चूँकि एक पढ़े लिखे और सीखे-सिखाये गए गणितज्ञ थे जिन्हें गणित की करेंसी का पूरा भान था, रामानुजन को उनका हल प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करते थे। रामानुजन की 'औपचारिक' गणितीय शिक्षा के लिए उन्होंने प्रोफेसर लिटलवुड से आग्रह भी किया लेकिन जैसे ही लिटलवुड रामानुजन को कुछ चुनौती भरा सिखाने बैठते, रामानुजन उसके लिए कुछ नए विचार सामने रख देते। हार्डी और लिटलवुड को इस बार पर कभी संदेह नहीं हुआ कि रामानुजन 'गलत' कह रहे लेकिन वे दोनों उन्हीं की भलाई के लिए उनसे हल माँगते थे। उस समय का पश्चिमी जगत वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही सोचता था और रामानुजन कहते थे कि उन्हें जो भी सूझता है, उसके पीछे उनकी कुलदेवी 'नमागिरी' का आशीर्वाद था। उन्होंने एक बार हार्डी को गुस्से में कह भी दिया था कि उनके लिए किसी समीकरण का कोई महत्व नहीं है जबतक कि वह ईश्वर के विचार को अभिव्यक्ति प्रदान नहीं करता। हार्डी घोर नास्तिक थे लेकिन उन्होंने कभी भी रामानुजन को उनकी धार्मिक आस्था के लिए नहीं कोसा।
अपने अंतिम दिनों में रामानुजन ने अपनी कई नोटबुक्स में कई सौ प्रमेयों, मॉड्यूलर फंक्शन, मॉक मॉड्यूलर फंक्शन, जीटा फंक्शन और पार्टीशन नंबर थ्योरी का उल्लेख किया था। उनकी मृत्यु की एक सदी बाद भी पूरे विश्व के मूर्धन्य गणितज्ञ उन नोटबुक्स का अध्ययन कर रहे हैं और यह सिद्ध भी कर चुके हैं कि उन सभी अद्भुत प्रमेयों में से 95% सत्य हैं। रामानुजन के बारे में बाद में विद्वानों ने कहा कि वह इकलौते ऐसे इंसान थे जिन्हें 'अनंत' का ज्ञान था। लोग उन्हें 'टाइम ट्रैवलर' भी कहते हैं। अभी भी 'केन ओनो' जैसे उनके अनुयायी यही जानने की कोशिश कर रहे कि रामानुजन के पास इतनी अप्रतिम मेधा शक्ति और इंट्यूशन कहाँ से आती थी। आज में शायद उनके बारे में करीब सातवीं बार पढ़ रहा था और मुझे यही समझ आया कि यह खोज, यह जिज्ञासा बेकार है। वह इंसान अनंत को जानता था क्योंकि वह ईश्वर का साक्षात्कार कर चुका था और उनकी सारी गणितीय मेधा उसी ईश्वरीय शक्ति का प्रमाण था। आज अगर विज्ञान रामानुजन के हर सिद्धांत और प्रमेय को सही सिद्ध कर रहा तो एक तरीके से वह ईश्वर की सत्ता और उनके अस्तित्व को ही स्वीकार कर रहा और मैं विश्वस्त हूँ कि अगर आज रामानुजन जीवित होते तो मुझसे इत्तेफ़ाक़ रखते।
रामानुजन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक जगत के मध्य की एक मजबूत कड़ी हैं जिन्हें एक गणितज्ञ के रूप में पूरे विश्व का आदर हासिल है लेकिन उनकी आध्यात्मिकता और ईश्वरीय तत्व को वैज्ञानिक वर्ग सुविधाजनक तरीके से नज़रंदाज़ करता रहा है। शायद समय आ गया है कि रामानुजन का पुनर्मूल्यांकन किया जाए और नाकि एक गणितज्ञ के रूप में वरन एक योगी के रूप में.....
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