आज थोड़ी देर से पता चला कि ज़ुबान पर लगाम ना हो तो उसका क्या अंजाम होता है। तो हुआ यूं कि कोहली ने अपने नाम से लांच हुए नए एप्प के प्रमोशन के दौरान अपने को ट्रोल किये गए कुछ ट्वीट्स के जवाब देने का सोचा और उनमें से एक ने ये कहा था कि कोहली 'दिखाऊ' बल्लेबाज़ ज़्यादा है और उस बंदे को इंग्लिश और ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ज्यादा पसंद हैं। कोहली ने जवाब दिया कि मुझे कोई दिक्कत नहीं कि आप मुझे पसंद नहीं करते लेकिन आपको ऐसा करना नहीं चाहिए। आपको अपनी प्राथमिकता निर्धारित करनी चाहिए और 'केवल अपने देश के खिलाड़ियों' का सम्मान करना चाहिए।
एक 'चार साल का नौजवान' ऐसी बातें बोलता है और मुझे इनसे ज्यादा तो सरफराज अहमद पसंद है। वह गुस्सा होता है, चिल्लाता है लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में एकदम सही और खरी बात बोलता है जबकि उसकी तालीम इनसे ज्यादा नहीं होगी किसी भी फील्ड में। मोदीजी का राज़ है, मैं उनके सारे अच्छे कार्यों का समर्थन करता हूँ लेकिन घर वापसी और देश निकाला जैसी बातें किस स्तर पर लोगों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, कोहली उसका सबसे नायाब नमूना हैं। जनाब को खुद दक्षिण अफ्रीकी हर्शेल गिब्ब्स पसंद थे तो क्या ये अफ्रीका चले गए? रॉजर फेडरर को पसंद करते हैं तो स्विट्ज़रलैंड चले जाएं। और तो और शादी इटली में की तो वहीं बस जाएं। इन्होंने तो सारी प्राथमिकताएं सेट कर रखी हैं। ऑडी कार (जर्मनी), प्यूमा जूते और टिसॉट (स्विस घड़ी निर्मात्री) को ये एंडोर्स करते हैं। कितने उदाहरण गिनाए जाएँ?
क्रिकेट के बारे में कहा जाता है कि अंग्रेजों द्वारा यह खेल दुर्भाग्यजनक ढंग से ईजाद कर दिया गया बस, असली खेलने वाले तो भारतीय हैं। यह अंग्रेजों की उदारवादिता है, ध्यान दें। आप तेंदुलकर और गावस्कर को महान कहें, रत्ती भर फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि हम भारतीय और वे भी लेकिन उन्हें महानतम पूरे विश्व और ऐसे विदेशियों ने ही बनाया है। मुझे पूरा विश्वास है कि वसीम, वकार और शोएब के जितने समर्थक हिंदुस्तान और इंग्लैंड में हैं, उतने पाकिस्तान में नहीं होंगे। सचिन को जितना सम्मान ऑस्ट्रेलिया देता है, कोई और देश दे ही नहीं सकता। ब्रैडमैन की तारीफ जितनी अंग्रेज़ करते हैं, ऑस्ट्रेलिया खुद नहीं करता। कितने और उदाहरण गिनाऊँ.....
अंधभक्ति सही नहीं है। उदारवाद ही आपके दिमाग को खुला रख सकता है और जब आपको एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी जाती है तो आपसे और भी ज्यादा उदार होने की उम्मीद की जाती है। नहीं तो उग्र राष्ट्रवादी बनने की सज़ा ही वार्नर, स्मिथ और बैनक्रॉफ्ट भुगत रहे हैं।
बेहद निंदनीय और निराशाजनक!!!
एक 'चार साल का नौजवान' ऐसी बातें बोलता है और मुझे इनसे ज्यादा तो सरफराज अहमद पसंद है। वह गुस्सा होता है, चिल्लाता है लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में एकदम सही और खरी बात बोलता है जबकि उसकी तालीम इनसे ज्यादा नहीं होगी किसी भी फील्ड में। मोदीजी का राज़ है, मैं उनके सारे अच्छे कार्यों का समर्थन करता हूँ लेकिन घर वापसी और देश निकाला जैसी बातें किस स्तर पर लोगों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, कोहली उसका सबसे नायाब नमूना हैं। जनाब को खुद दक्षिण अफ्रीकी हर्शेल गिब्ब्स पसंद थे तो क्या ये अफ्रीका चले गए? रॉजर फेडरर को पसंद करते हैं तो स्विट्ज़रलैंड चले जाएं। और तो और शादी इटली में की तो वहीं बस जाएं। इन्होंने तो सारी प्राथमिकताएं सेट कर रखी हैं। ऑडी कार (जर्मनी), प्यूमा जूते और टिसॉट (स्विस घड़ी निर्मात्री) को ये एंडोर्स करते हैं। कितने उदाहरण गिनाए जाएँ?
क्रिकेट के बारे में कहा जाता है कि अंग्रेजों द्वारा यह खेल दुर्भाग्यजनक ढंग से ईजाद कर दिया गया बस, असली खेलने वाले तो भारतीय हैं। यह अंग्रेजों की उदारवादिता है, ध्यान दें। आप तेंदुलकर और गावस्कर को महान कहें, रत्ती भर फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि हम भारतीय और वे भी लेकिन उन्हें महानतम पूरे विश्व और ऐसे विदेशियों ने ही बनाया है। मुझे पूरा विश्वास है कि वसीम, वकार और शोएब के जितने समर्थक हिंदुस्तान और इंग्लैंड में हैं, उतने पाकिस्तान में नहीं होंगे। सचिन को जितना सम्मान ऑस्ट्रेलिया देता है, कोई और देश दे ही नहीं सकता। ब्रैडमैन की तारीफ जितनी अंग्रेज़ करते हैं, ऑस्ट्रेलिया खुद नहीं करता। कितने और उदाहरण गिनाऊँ.....
अंधभक्ति सही नहीं है। उदारवाद ही आपके दिमाग को खुला रख सकता है और जब आपको एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी जाती है तो आपसे और भी ज्यादा उदार होने की उम्मीद की जाती है। नहीं तो उग्र राष्ट्रवादी बनने की सज़ा ही वार्नर, स्मिथ और बैनक्रॉफ्ट भुगत रहे हैं।
बेहद निंदनीय और निराशाजनक!!!
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