कल हिंदू में आईएनएस अरिहंत पर एक लेख आया था। कइयों को उसपर मेरी टिप्पणी निराश करेगी क्योंकि हम सब देशभक्त हैं और किसी भी तथाकथित (या असल) उपलब्धि पर गौरवान्वित महसूस करते हैं। आईएनएस अरिहंत एक ऐसी ही 'तथाकथित' उपलब्धि है।
इसकी रेंज 750 किमी है जो पाकिस्तान और हद से हद चीन को टारगेट कर सकती है। पाकिस्तान के पास जो टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स हैं, वे एक बैटलफील्ड को नुकसान पहुंचा सकते हैं नाकि एक पूरी सभ्यता को। अतः पाकिस्तान को हम अपनी लैंडबेस्ड न्यूक्लियर आर्सेनल से ही मात दे सकते हैं। चीन पिछले 50 वर्षों से लगातार 'पहले न्यूक्लियर हमला ना करने' के सिद्धांत पर टिका हुआ है। अतः अगर चीन अपनी पालिसी से पलटी खाता भी है तो भी उसको इस बात का अंदाज़ा अच्छी तरह होगा कि उसकी अरबों की जनसंख्या भारत के किसी भी प्रकार की हमलावर रणनीति से कितना नुकसान भुगतेगी। न्यूक्लियर पनडुब्बियां अक्सर अंतिम उपाय का काम करती हैं जब एक देश की लैंड बेस्ड वेपन्स ऑरमरी किसी हमले में पूरी तरह नष्ट हो जाती है और फिर ऐसी पनडुब्बियां सामने वाले के ऊपर चालाकी से हमला करके 'पारस्परिक विनाश' को अंजाम देती हैं। ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारत को फिलहाल ऐसी किसी भी परिस्थिति से आशंकित रहने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दूसरी बात कीमत। एक परमाणु पनडुब्बी 40 वर्षों तक काम करती है। एक अमेरिकन या ब्रिटिश पनडुब्बी को 2000-5000 करोड़ रुपये सालाना का मेंटेनेंस बिल चाहिए होता है। भारत की पनडुब्बियां छोटी और सस्ती हैं और इनके आधे खर्च में काम कर सकती हैं। अतः एक के ऊपर सालाना 1500 करोड़ का खर्चा। फिलहाल नेवी को 4 पनडुब्बियों की आवश्यकता है। एक पनडुब्बी 70,000 करोड़ की है फिलहाल, अतः तकरीबन 3 लाख करोड़ का खर्च आज के दिन की खरीद पर और इन चारों का 40 साल का मेंटेनेंस बिल 1500 करोड़ की लागत पर और 3 लाख करोड़ रुपये।
सरदार पटेल शांतिवादी नहीं थे लेकिन उन्हें वेस्टफूल मिलिट्री के नुकसानों के बारे में पता था। आज उनके स्टेचू पर हजारों करोड़ रुपये लागत आयी और अब ऐसी गैरजरूरी पनडुब्बियाँ। सरदार पटेल जिनकी यह सरकार सबसे ज्यादा इज़्ज़त करती है, निश्चित ही आज इन दोनों घटनाक्रम से निराश होते। इन सबके बावजूद हमारे जनप्रतिनिधि ज़रूरी विकास कार्यों के लिए पर्याप्त फण्ड के ना होने का रोना रोते हैं। हमेशा बिल गेट्स या वर्ल्ड बैंक की तरफ से फंड्स की आस लगाए रहते हैं। क्या हमारा भारत इतनी आर्थिक बर्बादी झेल सकता है?
यह एक पॉलिटिकल पोस्ट नहीं है। इसमें तमाम दृष्टिकोण और आंकड़े दिए गए हैं। अपने स्तर से इनकी विवेचना करें और अपने विचार सामने रखें।
इसकी रेंज 750 किमी है जो पाकिस्तान और हद से हद चीन को टारगेट कर सकती है। पाकिस्तान के पास जो टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स हैं, वे एक बैटलफील्ड को नुकसान पहुंचा सकते हैं नाकि एक पूरी सभ्यता को। अतः पाकिस्तान को हम अपनी लैंडबेस्ड न्यूक्लियर आर्सेनल से ही मात दे सकते हैं। चीन पिछले 50 वर्षों से लगातार 'पहले न्यूक्लियर हमला ना करने' के सिद्धांत पर टिका हुआ है। अतः अगर चीन अपनी पालिसी से पलटी खाता भी है तो भी उसको इस बात का अंदाज़ा अच्छी तरह होगा कि उसकी अरबों की जनसंख्या भारत के किसी भी प्रकार की हमलावर रणनीति से कितना नुकसान भुगतेगी। न्यूक्लियर पनडुब्बियां अक्सर अंतिम उपाय का काम करती हैं जब एक देश की लैंड बेस्ड वेपन्स ऑरमरी किसी हमले में पूरी तरह नष्ट हो जाती है और फिर ऐसी पनडुब्बियां सामने वाले के ऊपर चालाकी से हमला करके 'पारस्परिक विनाश' को अंजाम देती हैं। ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारत को फिलहाल ऐसी किसी भी परिस्थिति से आशंकित रहने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दूसरी बात कीमत। एक परमाणु पनडुब्बी 40 वर्षों तक काम करती है। एक अमेरिकन या ब्रिटिश पनडुब्बी को 2000-5000 करोड़ रुपये सालाना का मेंटेनेंस बिल चाहिए होता है। भारत की पनडुब्बियां छोटी और सस्ती हैं और इनके आधे खर्च में काम कर सकती हैं। अतः एक के ऊपर सालाना 1500 करोड़ का खर्चा। फिलहाल नेवी को 4 पनडुब्बियों की आवश्यकता है। एक पनडुब्बी 70,000 करोड़ की है फिलहाल, अतः तकरीबन 3 लाख करोड़ का खर्च आज के दिन की खरीद पर और इन चारों का 40 साल का मेंटेनेंस बिल 1500 करोड़ की लागत पर और 3 लाख करोड़ रुपये।
सरदार पटेल शांतिवादी नहीं थे लेकिन उन्हें वेस्टफूल मिलिट्री के नुकसानों के बारे में पता था। आज उनके स्टेचू पर हजारों करोड़ रुपये लागत आयी और अब ऐसी गैरजरूरी पनडुब्बियाँ। सरदार पटेल जिनकी यह सरकार सबसे ज्यादा इज़्ज़त करती है, निश्चित ही आज इन दोनों घटनाक्रम से निराश होते। इन सबके बावजूद हमारे जनप्रतिनिधि ज़रूरी विकास कार्यों के लिए पर्याप्त फण्ड के ना होने का रोना रोते हैं। हमेशा बिल गेट्स या वर्ल्ड बैंक की तरफ से फंड्स की आस लगाए रहते हैं। क्या हमारा भारत इतनी आर्थिक बर्बादी झेल सकता है?
यह एक पॉलिटिकल पोस्ट नहीं है। इसमें तमाम दृष्टिकोण और आंकड़े दिए गए हैं। अपने स्तर से इनकी विवेचना करें और अपने विचार सामने रखें।
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