भारतीय क्रिकेट टीम 1986 में इंग्लैंड के दौरे पर थी। मनोज प्रभाकर वैकल्पिक तेज गेंदबाज के रूप में टीम के साथ मौजूद थे। चेतन शर्मा को पहले टेस्ट मैच में चोट लगी और वे दौरे से बाहर हो गए। भारतीय कप्तान कपिल देव ने प्रभाकर की जगह इंग्लैंड में 'लीग' (क्लब प्रतियोगिता) क्रिकेट खेल रहे 'मदनलाल' को स्क्वाड और बाद में फाइनल 11 में जगह दे दी। मनोज प्रभाकर देश के लिए एक बेहतरीन क्रिकेटर रहे हैं और 'कथित' अनुशासनहीनता और बीसीसीआई की लीक पर ना चलने की वजह से उनकी उपलब्धियों को भुला दिया गया है। 8 टेस्ट अर्धशतक जिनमें से 7 बतौर टेस्ट ओपनर और ओवरसीज लोकेशन्स पर, साथ ही अनगिनत विकेट्स ओपनिंग बॉलर के रूप में और दिन भर केवल अपना सर्वश्रेष्ठ देने की चाहत। कपिल के खिलाफ जाने का साहस आजतक प्रभाकर के बाद केवल सौरभ गांगुली ही कर पाए जब उन्हें भी 'कथित' अनुशासनहीनता के आरोपों के कारण 1991-92 के ऑस्ट्रेलिया दौरे से वापिस घर भेज दिया गया था।
2011-12: भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा। भारत पहले 2-0 से और फिर 3-0 से पीछे हुआ। स्क्वाड में अजिंक्य रहाणे, विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे नौजवान खिलाड़ी शामिल लेकिन एडिलेड में सिवाय कोहली के किसी को नहीं खिलाया गया और उसी मैच की चौथी पारी के शतक के बदौलत कोहली आज विश्व क्रिकेट के सरताज बनें। खैर, लक्ष्मण और द्रविड़ दौरे के बाद रिटायर हुए और एक खाली जगह पुजारा ने काबिलियत और प्रदर्शन के दम पर हथिया ली। दूसरी भरनी थी अगले श्रीलंका और विंडीज़ दौरे पर। रोहित खराब प्रदर्शन की वजह से टीम से बाहर थे लेकिन रहाणे के दुर्भाग्य ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और एक विशेषज्ञ बल्लेबाज की टीम में जरूरत होते हुए भी 'रविन्द्र जडेजा' को मैनेजमेंट ने डेब्यू करा दिया।
2018: करुण नायर को समझ नहीं आ रहा कि वे करें क्या? कुर्सी पर बैठे रहने और मैदान में ड्रिंक्स पहुंचाने से तो प्रथम श्रेणी क्रिकेट में रन बनने से रहे और टीम मैनेजमेंट (ध्यान दें, चयनकर्ता नहीं) उन्हें पसंद भी नहीं करता। ऊपर से हनुमा विहारी के रनों के बोझ टीम मैनेजमेंट पर इतना भारी पड़ा कि वे सीधे टीम में और नायर फिर उनको पानी पिलाते मिले।
कल राजकोट में पहला टेस्ट शुरू हो रहा और पृथ्वी शॉ का डेब्यू कनफर्म्ड हैं। मज़े की बात कि फाइनल 11 में से हनुमा विहारी भी गायब हैं। और तो और, पिछले दो वर्षों में रनमेकिंग में भारत के सारे पुराने रिकार्ड्स को ध्वस्त करने वाले मयंक अग्रवाल को समझ नहीं आ रहा कि अब उन्हें 11 में जगह बनाने के लिए क्या करना होगा? पृथ्वी शॉ सचिन के उत्तराधिकारी कहे जा रहे और जिन्होंने उन्हें खेलते देखा है, उन्हें पता है कि वे बेहतरीन हैं लेकिन उनके खेल में एक बहुत बड़ी कमी है जोकि उनका लेग स्टंप का गार्ड लेकर खेलना है। अपने हैंड-ऑय कोआर्डिनेशन की बदौलत वे रन तो बना ले जाते हैं लेकिन उसके लिए उन्हें गेंद की पिच तक पहुंचने के लिए स्ट्रेच करना होता है। एक बढ़िया आउट-स्विंगर उन्हें झट से टेस्ट लेवल पर आउट कर सकती है।
फिलवक्त मैं उन्हें शुभकामनाएं दूंगा लेकिन ऊपर वाली केस स्टडीज पढ़ें और मनन करें कि भारतीय टीम में चयन हासिल करना आखिर किन-किन कारकों पर निर्भर करता है.....
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