सिंध नरेश 'दाहिर' की पुत्रियों, सूर्या और परमाल देवी, के अरब के खलीफा के सामने आत्मोत्सर्ग की कहानी आपमें से बहुत कम ने सुनी होगी। यह 'चचनामा' से उद्धृत है जो 715 ईशवी के सिंध का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करती है। इस कहानी को मैंने अपने आरएसएस के अनुषांगिक संस्थान विद्याभारती द्वारा संचालित विद्यालय की इतिहास की पुस्तक में पढ़ा था। उसी पुस्तक में मैंने चार बांस, चौबीस ग़ज़ वाली चंदबरदाई की कवितापाठ और तदोपरांत पृथ्वीराज द्वारा मुहम्मद गोरी की शब्दभेदी बाण से की गई हत्या वाली कथा भी पढ़ी थी जोकि कालांतर में झूठी साबित हुई या कम से कम 'विवादास्पद' तो बिल्कुल ही। खैर, विद्याभारती की पुस्तकें हिन्दू गौरव की बातें करती थीं और उन्हें पढकर उस छोटी से उम्र में भी जोश आ जाता था। अगर इस कहानी का सही आधार 'चचनामा' है तो मैं इसके लिए खुश हूं। दूसरी बात एक हमारे दोस्त ने यह उठाई कि राजपूत इतने वीर होते हुए भी क्यों हमेशा हारते रहे? पहले तो इसलिए हारते रहे कि भीतरघात बहुत ज्यादा होती थी और शासकों के बीच ही होती थी। ऐसा अपने राजस्थान के इतिहास के विशद अध्ययन के आधार पर कह सकता हूँ। दूसरा, छोटे छोटे राज्यों में बसे होने के कारण सैन्यबल कभी ज्यादा नहीं रहता था। तीसरी बात और जोकि पुनः एक प्रसिद्ध इतिहासकार के हवाले से लिख रहा कि गुजरात, सिंध, पंजाब और राजस्थान के लड़ाके शासकों की वजह से ही हिंदुस्तान 500 वर्षों तक अपने को मुस्लिम आक्रांताओं से बचा पाया जबकि उस समय अधिकांश यूरोप उनके कब्जे में आ चुका था। अतः राजपूतों की वीरता निस्संदेह स्थापित है लेकिन जो चारित्रिक दुर्बलताएं साधारण मनुष्यों को परेशान करती रही हैं, वही राजपूतों की अनेकानेक असफलताओं की भी कारण बनीं।
It's really hard to switch on to a different language from the one you have constantly been tinkering with. I grew so accustomed to writing in Hindi in last few days that it started dawning on me that I might never be good again with my English. So this is a tester, ladies and gentlemen. Yesterday, one of my movie group friends, an American by nationality, questioned my fondness of documentaries. I specifically wrote in one of my columns that documentaries demand your unwavering attention and once you gave 'that' to them, you are rewarded much more handsomely than a proper, narrative, fictitious film. My reasoning for believing so is that a documentary is an experience of a creative process. It doesn't get made to 'entertain' you. They are there to reveal something to you. They teach you something. You get overwhelmed by them. 'Racing Extinction (2015)' was one such documentary. I watched it in last couple of days. I couldn't complete it in one ...
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