टाई मैचेज काफी कम हैं क्रिकेट इतिहास में। कल वाले मैच का रिजल्ट काफी सही कहा जा सकता है अगर हम अफ़ग़ानों का प्रदर्शन पूरे टूर्नामेंट में और कल विशेषतः देखें। लेकिन अफ़ग़ान, पाकिस्तान के जैसे एक 'इरेटिक' टीम हैं। वे गलतियाँ काफी करते हैं और आपको काफी मौका देते हैं। भारत कभी भी 'गड़बड़' क्रिकेट खेलने में यकीन नहीं करता और उनके खेलने का एक व्यवस्थित तरीका है। इस पूरे टूर्नामेंट में 250 का स्कोर काफी सुरक्षित रहा है और यह जानते हुए भी कि केवल एक विकेट गेम पलट सकता है, रायुडू और राहुल अपने विकेट फेंक दिए। अफ़ग़ानों के तीन स्पिनर्स हैं: राशिद, मुजीब और नबी अपने कोटे के 30 ओवरों में आपको 135 रन्स से ज्यादा नहीं देंगे। फिर उनके स्किलसेट भी ऐसे हैं कि नए बल्लेबाज़ मिडिल ओवर्स में आकर उन्हें मार नहीं सकते। मारना क्या है, विकेट ही बचाना है। राहुल आज टीम में जगह नहीं ढूंढ पा रहे, उसका एक कारण उनका टेम्परामेंट है। टैलेंट आपके पास दुनिया भर का हो लेकिन अगर आप विकेट पर रुकना ही नहीं चाहेंगे तो शतक और दोहरा शतक कैसे लगा पाएंगे? फिर अंपायरिंग का एक ही मैच में इतना खराब होना 90 के दशक की याद दिला गया। 2 पगबाधा निर्णय और एक छक्के को चौके में बदलकर अंपायर ने इंडियन चेज़ का क्रियाकर्म कर दिया लेकिन वहाँ भी राहुल ज़िम्मेदार। राशिद विकेट टू विकेट गेंदबाज़ी करते हैं और अगर गेंद आपने बल्ले से मिस कर दी और वह पैड पर लगी तो आपका समय समाप्त। एक इनिंग्स में एक रिव्यु मिलता है और जनाब ने वह लेकर धोनी और कार्तिक की कब्र खोद दी।
अफ़ग़ान अच्छा खेले लेकिन हम अपने लेवल से काफी खराब खेले। एक छोटा भारतीय लड़का मैच के बाद फुट-फूटकर रोया। मैं उसे सांत्वना स्वरूप यही कह सकता हूँ कि बेटा जी, क्रिकेट समर्थक बनना है तो ऐसे दिल तोड़ने वाले हालातों के लिए हमेशा तैयार रहना। अपन अब रो नहीं सकते लेकिन अपने इस 'क्रिकेट ट्रैजिक' वाले ठप्पे के साथ, ऐसे मौकों पर, कुढ़ते ज़िन्दगी भर रहेंगे।
अफ़ग़ान अच्छा खेले लेकिन हम अपने लेवल से काफी खराब खेले। एक छोटा भारतीय लड़का मैच के बाद फुट-फूटकर रोया। मैं उसे सांत्वना स्वरूप यही कह सकता हूँ कि बेटा जी, क्रिकेट समर्थक बनना है तो ऐसे दिल तोड़ने वाले हालातों के लिए हमेशा तैयार रहना। अपन अब रो नहीं सकते लेकिन अपने इस 'क्रिकेट ट्रैजिक' वाले ठप्पे के साथ, ऐसे मौकों पर, कुढ़ते ज़िन्दगी भर रहेंगे।
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