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Showing posts from March, 2018

स्टीव वॉ, ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट इतिहास और बॉल टेम्परिंग प्रकरण

स्टीव वॉ ने अभी मात्र 8 मिनट पहले एक फेसबुक पोस्ट में हाल के बॉल टेम्परिंग प्रकरण के ऊपर टिप्पणी की है। औरों की भांति वह भी काफी निराश हैं लेकिन एक अच्छा लीडर वही होता है जोकि संतुलित प्रतिक्रिया देता है और दूरगामी परिणाम के बारे में सोचता है। कल मैंने क्रिकइंफो पर उनके सहसंपादक Brydon coverdale का एक बेहद सारगर्भित लेख पढ़ा। वह एक ऑस्ट्रेलियाई खेल पत्रकार हैं और बेहद योग्य व्यक्ति। उन्होंने हमें बताया है कि क्यों ऑस्ट्रेलिया इतना खफा और दुःखी है इस प्रकरण से। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान दुनिया के आखिरी कोने के देश हैं लेकिन किसी भी खेल प्रतियोगिता में अपनी औकात से बेहद ऊपर प्रदर्शन करते आये हैं। ऑस्ट्रेलिया एक संघ/देश 1901 में बना लेकिन उसने पहला टेस्ट मैच 1877 में एक देश के रूप में खेला। उसे उसका पहला प्रधानमंत्री 1901 में मिला लेकिन पहला टेस्ट कप्तान 1877 में।अब आप समझ सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया का टेस्ट कप्तान बनना कितने सम्मान की बात है। पूरे देश में प्रधानमंत्री के बाद यह दूसरी सबसे महत्वपूर्ण पोस्ट है। स्टीव वॉ ने इसी बेहद प्रतिष्ठित परंपरा की बात की है और बिना खिलाड़ियों की

अब कौन दोषी?

कुछ लोग सुधारे ही नहीं जा सकते मतलब। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने वार्नर, स्मिथ और Bancroft को घर भेज दिया जबकि कोच लेहमैन, बॉलर तिकड़ी नाथन लॉयन, स्टार्क और हैजलवुड पाक साफ करार दिए गए। पूरे दिन विश्व मीडिया झख मारती रह गयी इस अनुमान के आस पास कि लेहमैन के दिन (या घंटे) गिनती के रह गए हैं और यह परिणाम निकला। मैं अब ज्यादा दुःखी हूँ क्योंकि Bancroft और स्मिथ के अंदर इतनी तो हिम्मत थी कि सबके सामने आकर अपनी गलती कुबूली और गर्दन कटवा दी। नाम तक नहीं लिया उन सबका जो इन सबमें उनके साथ थे। अब कौन बड़ा गैरत वाला निकला? क्या जो बच गए, वो चैन से रह पाएंगे? कोई ना कोई फूटेगा और फिर इन सबको ले बीतेगा। यह ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट प्रशासकों के पास एक बेहतरीन मौका था कि वो अपनी क्रिकेट को साफ सुथरा कर सकें। लेहमैन जैसा व्यक्ति जो ज़िन्दगी भर लोगों के लिए अपने मन में नफरत भरता रहा, अभी भी कोच पद पर बैठा है और अब बड़ी शान से। कम से कम इन प्रशासको को उन सभी आरोपी खिलाड़ियों को टीम से बाहर कर देना चाहिए था कुछ समय तक और अच्छे से जांच पड़ताल करके अंतिम निर्णय लेना चाहिए था। ये कौन सा उदाहरण प्रस्तुत किये है

Sandpapergate Saga: The Stunning Fall from Grace for Steve Smith and 'Australianism' at large

Now that everything is said and done in Capetown against the Aussies, I am feeling a strange kind of sadness. Since the inception of our great game in 1880s, Australia have been the most dominant exponent of it. They are the Gold Standard in world cricket. You are considered worth your salt in international cricket only when you are done establishing your reputation against them. Even when they lose, they are the 'real' team to beat. Their preparation is always meticulous and they are thorough professional. They emphasize upon playing 'hard but fair cricket' and in my experience, there hasn't been a better looking team when the Australians are on the roll. I remember Kolkata 2001. Harbhajan Singh has just taken a hattrick and Australia were 252/8. Well everybody believed India could roll them over within next 10 mins considering the rampage turbanator was having his hand on. But then Steve Waugh, the 'old leather boot', played one of his trademark reargua

स्टीव स्मिथ और जितने मुंह उतनी बातें

जनता के मिजाज को भांपना हमेशा से मुश्किल रहा है। राजस्थान रॉयल्स ने पूर्ववत सूचना के अनुसार आज स्टीव स्मिथ को कप्तानी पद से हटा दिया और उनके स्थान पर अजिंक्य रहाणे को कप्तान बनाया गया है। मैंने इस ऑफिसियल पोस्ट के नीचे के कमैंट्स पढ़े और मुझे पता चला कि हिंदुस्तानियों या यूं कहें कि राजस्थानियों को बिल्कुल फ़र्क़ नहीं पड़ा कि स्टीव स्मिथ ने बाल टेम्परिंग की है और अपने पूरे राष्ट्र को ही शर्मसार कर दिया। उन्हें बस यह पता है कि रहाणे T20 खिलाड़ी नहीं है, पहली बात और दूसरा कि वह काफी सॉफ्ट पर्सनालिटी हैं जो मुश्किल हालातों में कुछ नहीं कर पाएंगे। अब सोच लीजिये आप। स्टीव स्मिथ को दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट खेलने वाले देश के समर्थकों का समर्थन मिल रहा है और ऑस्ट्रेलिया उनकी गर्दन के पीछे पड़ा है। फिर लोग यह भी कह रहे हैं कि जो फ्रैंचाइज़ी खुद मैच फिक्स करने में संकोच नहीं करती वो दूसरों को क्या सिखाएगी? इसीलिए लोग कहा करते हैं कि खुद शीशे के घर मे रहने वाले दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।

सन २०१८ के कुछ प्रमुख वैश्विक सूचकांकों को याद रखने का तरीका

विभिन्न वैश्विक सूचकांकों को याद करना टेढ़ा काम है। अथक परिश्रम के बाद भी लोग उसे परीक्षा के दिन भाग्य भरोसे छोड़ देते हैं। मैं उन्हीं लोगों में से एक हूँ हालाँकि इस बात में विश्वास रखता हूँ कि कई बार देख लिया जाए तो गलती कम होगी। इस बार भी वही सारे सूचकांक सामने आ गए हैं और मैंने एक पैटर्न नोटिस किया जो आपने भी किया होगा। जहाँ भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है, वहाँ हमारी रैंक 100 से कम होगी, अतः अगर पेपर बनाने वाले ने विकल्प पास पास ना रखे, तो काम बन सकता है। उस दिशा में बस सूचकांक के नाम ही याद रखने होंगे। कुछ उदाहरण: समावेशी सूचकांक: 62 भ्रष्टाचार: 81 (पहले से स्थिति खराब है लेकिन तब भी डबल डिजिट में है) नवाचार (इनोवेशन) : 60 प्रतिस्पर्धा: 40 पर्यटन: 40 जलवायु परिवर्तन: 14 (बेहतरीन) साइबर सुरक्षा: 23 यह सब दो डिजिट वाले हैं। शायद कुछ आसानी हो। अब भुखमरी और ease ऑफ डूइंग बिज़नेस का एक ही है: 100, इसे ऐसे ही याद रखना। मानव विकास सूचकांक 131 है, यह आपको रट गया होगा। सतत विकास पूछ दे रहा है, 116 है। अब मानव पूंजी और लिंग अंतराल दो बचे। याद हो गये तो ठीक, नहीं तो छोड़िए।

Capetown Test (2011): Recollections of a 'Classic' Encounter

Capetown test 2011: Aus vs SA Australian Captain Michael Clarke makes a gritty hundred on day 1 amidst the fiery spells of Vernon Philander (on debut) and Dale Steun. Australia makes 284. South Africa on 2nd day gets folded by Shane Watson (5/15). 96 All Out. Australia bats again on Day Two. Gets all out for 47. Philander (5/17) South Africa wins the match on the back of a majestic hundred by Skipper Graeme Smith. 236/3 Mike Haysman in Presentation ceremony to Michael Clarke: "Michael, you made an outstanding 151 couple of days ago and I had thought I might be asking you in 2-3 days time how it felt scoring those tough runs." Michael Clarke: "Well Mikey, you can very well ask me that now. I am telling you it was rubbish. A complete waste of time." Pure Class. Pure Emotion. Pure Hunger. A gold standard from Michael Clarke.

साप्ताहिक लेखा जोखा: रवीश कुमार, पॉल क्रुगमैन और भारतीय 'डेमोग्राफिक डिविडेंड' झुनझुना

रवीश कुमार ने सरकार की केवल एक दुखती रग पर हाथ रख दिया और आज हिंदी में 'लोकप्रिय' पत्रकारिता के शिखर पर विराजमान हो गए। ऐसा नहीं है कि वो या उनका चैनल दूध के धुले हैं। अब जैसा कि लोग उन्हें या उनके चैनल को सत्ता विरोधी या साम्यवादी बुलाते हैं, उस हिसाब से देखा जाए तो उन्हें पतंजलि के प्रोडक्ट्स का प्रचार नहीं दिखाने चाहिए लेकिन खुलेआम दिखाते हैं या ये कहूँ कि सबसे ज्यादे दिखाते हैं। फिर और भी बहुतेरे मुद्दे हैं जो NDTV को बहुप्रिय बनाने से रोकते हैं लेकिन सरोकारी पत्रकारिता में उनका कोई सानी नहीं। कल पॉल क्रुगमन जोकि वर्ष 2008 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, ने कहा कि जो प्रगति भारत ने पिछले 30 सालों में अर्जित की है, वो ब्रिटेन ने 150 सालों में की। इसके लिए हम बधाई के पात्र लेकिन उन्होंने आगे की दो प्रमुख चुनौतियाँ गिनाईं। एक बेरोज़गारी और दूसरी, आय असमानता। आय असमानता पर तो हम जैसे छद्म पूँजीवादी देश कुछ नहीं कर सकते। यह महामारी बन गयी है लेकिन बेरोज़गारी में जरूर बहुत कुछ हो सकता है। पॉल ने एक रास्ता सुझाया-मैन्युफैक्चरिंग। सरकारी नौकरी सरकार करोड़ो में सृजित नही

Oscar Success Stories: Gary Oldman, James Ivory and Roger Deakins

Was watching Oscar yesterday. Noticed two lovely things in particular which gladdened my heart. You see, this wasn't first Oscar just for beloved Gary but two more renowned Hollywood perfectionists. Best Adapted Screenplay award went to James Ivory who has been writing and directing films for eternity now. Under the Aegis of fabled Merchant-Ivory Productions of whose he was one part, he gave us memorable gems in form of 'A Room With A View', 'Howard's End', 'Remains of the Day'. Ismail Merchant, his closest friend, didn't win the Oscar as well although all of these above mentioned film of theirs scored tons of nominations. However, their favorite writer, Ruth Pravar Jhabwella, did win the Oscar for them (for Remains of the Day). James Ivory, a man in his late 80s, received a thunderous applause and standing ovation from Oscar crowd. He remembered both Jhabwella and Merchant and that was heart-touching. It was his fourth nomination and although ther

इतिहास की मनमाफिक व्याख्या के दुष्परिणाम: सर विंस्टन चर्चिल (एक उदहारण)

हम इतिहास के छात्र हैं। सर विंस्टन चर्चिल एक ऐतिहासिक शख्सियत हैं। यह आर्टिकल चर्चिल को एक नस्लवादी और युद्धप्रिय नेता घोषित करता है। बाकायादा स्रोत भी हैं सबूतों के लिए। चर्चिल ने गांधी जी को एक नंगा फकीर कहा था जिसका उल्लेख हमारा परीक्षा आयोग कई बार कर चुका है। चर्चिल भारतीयों से भी नफरत करते थे, यह भी सही है लेकिन चर्चिल को एक और बात से भी घृणा थी और वह थी, कमजोर नेतृत्व क्षमता और इच्छाशक्ति। द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले चर्चिल ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली की भारतीय नीति के मुखर आलोचक थे। यह लेख खुद ही कहता है कि वह नहीं चाहते थे कि भारतीयों का नेतृत्व एक ऐसी शक्ति करे जो कि भ्रष्टाचारी ना हो। फिर चर्चिल को लोग बंगाल अकाल के लिए भी कोसते हैं। यह सही है क्योंकि इसका उल्लेख मुझे इंग्लैंड के तत्कालीन शासक की एटली की वार्तालाप में मिला जहाँ वो चर्चिल की 5-6 बेहद विवादित नीतियों का उल्लेख करते हैं और उनकी भारतीय नीति उसमे से प्रथम रही है। यह वार्तालाप उस समय हुआ था जब नाज़ी सेना बेल्जियम और हॉलैंड को जीतकर फ्रांस की सीमा तक पहुंच गई थी और चूंकि ब्रिटेन उस समय यूरोप का स

डेविड वार्नर की अपने 'पुराने' अवतार में वापसी

डेविड वार्नर और विराट कोहली हमारी क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हो सकते हैं लेकिन क्या ये सर्वश्रेष्ठ दूत भी हैं, बिल्कुल नही। दोनों की हरकतें दर्शकों को इतनी शर्मिंदा करती हैं कि जिस खेल को हम सज्जनों का खेल कहा करते हैं, उसे देखने तक की इच्छा नहीं होती जब ये खेल रहे होते हैं। डेविड वार्नर ने कल ड्रेसिंग रूम की सीढ़ियों पर डी कॉक के साथ जैसा बर्ताव किया वो भी तब जब उनकी टीम दक्षिण अफ्रीका के ऊपर हावी थी, अत्यंत शर्मनाक और निराशाजनक थी। केवल एक सेशन के खेल ने ऑस्ट्रेलियाई टीम को इतना विचलित और अधीर कर दिया कि क्रिकेट की सारी गौरवशाली मर्यादाओं को इन्होंने ताक पर रख दिया। डेविड वार्नर ने अपने टेस्ट मैच प्रदर्शन में आशातीत सुधार लाया है पर उनका यह बर्ताव टेस्ट मैच में उनकी प्रगति का सही द्योतक नहीं है। मैं उम्मीद करूँगा की ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड इस मामले की जाँच पड़ताल करके उनके ऊपर सख्त से सख्त कार्यवाही करे!!

Gary Oldman: Finally a (G)oldman

About time, Academy corrected a long due mistake and gave the Oscars to the worthiest candidate for world's greatest living actor title, I.e. Gary Oldman. They acknowledged and bowed down to the astonishing body of work of Gary Oldman and provided him with the 'coveted' moment. 34 years and more than 34 faces later, Gary Oldman has got his Golden Man. All of Britain must be happy for him and I propose that they give Gary the Knighthood as soon as possible. I also believe all his peers, colleagues, followers and students must be over the moon at this moment. Actors like Daniel Radcliffe, Thomas Hardy, Benedict Cumberbatch, Michael Fassbender, Colin Firth, Anthony Hopkins, Daniel Day Lewis, Brad Pitt, Johnny Depp, Tobey Maguire, Shia Lebouf and many, many others have long considered him the G.O.A.T and his absolute Domination of Winston Churchill's persona was the fitting finale of a 'glorious' career. A Cinematic Chameleon par excellence got the Oscars for ano