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Showing posts from August, 2018

अरुणाचल प्रदेश सीमा पर योजनावद्ध चीनी 'खनन' गतिविधियों के संभावित दुष्परिणाम

अब तक सारे सुधीजनों को चीन के अरुणाचल प्रदेश सीमा पर खनन गतिविधियों का पता चल गया होगा। आइए कुछ जरूरी जानकारियों/मुद्दों की बात करते हैं: 1. Lhunze, जहाँ चीन ने सोना, चांदी और बहुत से दुर्लभ खनिजों का 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का भंडार खोजा है, वह सन 1959 तक भारत का हिस्सा था। 1962 कि युद्ध से पहले भी चीन भारतीय क्षेत्र पर अधिकार करता रहा है और यह क्षेत्र उसने असम राइफल्स के जवानों को खदेड़ कर हथिया लिया। उस समय भारत सरकार को अक्साई चीन जैसे इसका कुछ खास एहसास हुआ नहीं होगा लेकिन आज 60 साल बाद तस्वीर बिल्कुल उलट है। 2. चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है। 1960-70 में तिब्बत एक खास मुद्दा हुआ करता था क्योंकि चीन एक आर्थिक महाशक्ति नहीं था और अमेरिका उसे हमेशा तिब्बत के पीछे धमकाता रहता था। आज दलाई लामा खुद 'स्वायत्तता' की बात करना शुरू कर दिए हैं, नाकि 'स्वतंत्रता' की। तिब्बतियों के ऊपर राजनीति अभी भी होती है लेकिन अब दलाई लामा धर्मगुरु और तिब्बती 'चीनी' बन चुके हैं। 3. चीन ने Lhunze कॉउंटी, जोकि उसके शानान प्रान्त के हिस्सा है, वहा

जल संरक्षण, स्वच्छ जल अभियान और सीवेज ट्रीटमेंट के क्षेत्र में घटित कुछ बेहद महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम

पिछले कुछ समय से हम लोग देश विदेश के समसामयिक घटनाक्रम और ज्वलंत मुद्दों पर बात कर रहे हैं। इसी दौरान जल संरक्षण की बात हुई थी और यह भी कि हमारे समुद्रों में पूरी उपलब्ध जलराशि का 98% जल है तो उनका अलवनिकरण करके उसका उपयोग क्यों ना किया जाए या किस प्रकार किया जाए? इसके ऊपर कुछ अध्ययन किया तो पता चला कि चेन्नई में पहले से ही दो प्लांट्स काफी अच्छे से काम कर रहे और दो और जल्द ही शुरू होने वाले हैं जो अगले वर्ष तक चेन्नई की रोज़मर्रा की जल जरूरतों का 50% भार उठा सकेंगे। अभी बिजली खर्च सबसे बड़ी चुनौती है इन प्लांट्स की लेकिन कुछ समय बाद सोलर एनर्जी वगैरह का इस्तेमाल करके इस चुनौती पर काबू कर लिया जाएगा। साथ मे, गुजरात मे भी ऐसे ही प्लांट्स लग रहे। विश्व की बात की जाए तो 150 से ज्यादा देशों में 18,000 ऐसे प्लांट्स हैं जो बिल्कुल स्वच्छ और स्वस्थ जल लोगों तक पहुंचा रहे हैं। अभी लागत ऊंची है विभिन्न कारणों से लेकिन यह बहुत जल्द ही आम इंसान की पहुंच में आ जायेगी। यह बात हुई फ्रेश वाटर के संरक्षण और प्रयोग की और अब बात होगी उस पानी की जिसका हम उपयोग करके उसे गंदा करके सीवेज में बदल देते हैं। न

भारत: छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था या एक भ्रमित राष्ट्र?

भारत फ्राँस को पिछाड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्वामी बन गया। कल रूस के नेशनल टीवी के मीडिया आउटलेट ने इसपर एक स्टोरी चलाई और उसपर कोई फ़िल्टर अप्लाई नहीं किया। रूस वाले सकारात्मक थे जैसे कि उम्मीद थी लेकिन उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए। इंग्लैंड और फ्राँस वाले बेहद आक्रामक ढंग से इसपर प्रतिक्रिया दिए। पाकिस्तानियों से कोई उम्मीद नहीं थी, सो उन्होंने मुझे निराश भी नहीं किया। लेकिन कुछ निष्कर्ष उस पूरी कहानी से निकले जिसे आपके साथ साझा करने का मेरा मन है.... 1. छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का टैग यह सच्चाई नहीं छुपा सकता कि भारत मे अमीरों और गरीबों के मध्य की खाई चौड़ी होती जा रही। 2. प्रति व्यक्ति आय भारत की मात्र 1700 डॉलर है जबकि फ्राँस की 34,000 डॉलर। प्रति व्यक्ति आय ही अर्थव्यवस्था की प्रगति का सही संसूचक होता है। अतः हमें काफी फासला तय करना है। 3. आज़ादी के मात्र 70 सालों बाद ही हमने दुनिया को अपनी पहचान दिखा दी है। यह हमारी काबिलियत का प्रमाण है। यहाँ यह बात गौर करने लायक है कि इंग्लैंड ने हमें प्रथम औद्योगिक क्रांति के फायदे से महरूम रखा लेकिन तब भी हमने अपनी सूचना

चीनी आक्रामकता का बढ़ता दायरा: पहले हिन्द महासागर और अब प्रशांत

एक जमाना हुआ करता था जब भारत यह सोचता था कि चूंकि हिन्द महासागर का नाम हिन्द महासागर है तो वह इनका है या कम से कम ये निर्णय लेंगे कि इसका क्या करना है या इसमें क्या होगा। आज से दो-तीन साल पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भी यही लगता था कि चूंकि दक्षिणी प्रशांत महासागर में स्थित ये दो देश सबसे प्रभुत्व वाले हैं तो यही इसके भाग्य विधाता हैं। तो यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन ने इन तीनों देशों की गफलत को दूर कर दिया है। इन तीनों देशों के पास ऐसा कहने सोचने का कोई हक भी नहीं है। आज भारत सागरीय क्षेत्र की संप्रभुता की बात बड़ी मजबूती से सामने रखता है लेकिन यह तब हो रहा जब चीन जिबूती, ग्वादर और हम्बनटोटा में अपने मिलिट्री बेस/पत्तन तैयार कर चुका है। इन तीनों राष्ट्रों ने यह समझने में अच्छी खासी देर लगा दी कि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और चूंकि अब उसकी घरेलू व्यवस्था और प्रशासन सुदृढ़ है, वह जरूर एक वैश्विक महाशक्ति बनने का प्रयास करेगा। आप किसी संप्रभु राष्ट्र की विदेश नीति में हस्तक्षेप तब तक ही कर सकते हैं जब तक कि उसकी स्थिति आपसे मजबूत ना हो। चीन इन तीनों राष्ट्रों

राहुल द्रविड़ की प्रशंसा में......

मेरी जानकारी में एक मीडिया एजेंसी है जो केवल सनसनीखेज खबरों के ऊपर ही ध्यान देती है। लेकिन एक दिन उसने राहुल द्रविड़ के ऊपर कुछ लिखा और मैंने उसे उसके पापों से मुक्त कर दिया। राहुल के ऊपर मैं शायद मार्च से ही लिखना चाहता था। भारत U-19 वर्ल्ड कप जीता था और द्रविड़ ने उस खुशी के मौके पर भी सबको बराबरी की इनामी राशि की वकालत कर दी। हम इसे टिपिकल द्रविड़ स्टाइल कहने लगे हैं। सभी ने कहा कि यार इतना भी ना करो कि कुछ कहने-सुनने को ही ना बचे। लेकिन इस बंदे को चैन नहीं और उनको भी नहीं जिन्हें सही आदमियों की परख है। भाई, तारीफ पर तारीफ लेकिन सबसे बड़ी तारीफ ICC की ओर से जिसने उन्हें भारत की ओर से केवल 5वां ऐसा क्रिकेटर बनाया जिसे उसके हॉल ऑफ फेम में जगह मिली। शायद इससे सही मौका मुझे नहीं मिल सकता था कि मैं कुछ लोगों की मदद से ही सही अपनी कृतज्ञता राहुल के लिए प्रगट कर सकूं। 1. स्टीव वॉ: आप उनका विकेट पहले 15 मिनट में ले लें, ऐसा नहीं होता तो बाकी के लेने की कोशिश शुरू कर दें। 2. MTV इंडिया: टाइम और टाइड किसिस का इंतज़ार नहीं करते, सिवाय द्रविड़ के। 3. Gideon Haigh (प्रख्यात क्रिकेट इतिहासकार ए

२०१८ फुटबॉल वर्ल्ड कप: कुछ प्रेरणादायी किस्से

जापान की फुटबॉल टीम इस वर्ल्ड कप में चैंपियन जैसी खेली। कोलंबिया को हराकर किसी दक्षिणी अमेरिकी फुटबॉल टीम को हराने वाली पहली एशियाई टीम बनी। अपने ग्रुप में सबसे निचली रैंकिंग (61वी) की टीम होते हुए भी अंतिम 16 में उसने जगह बनाई जहाँ विश्व की तीसरी सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग की टीम बेल्जियम से वह 3-2 के अंतर से इंजरी टाइम के अंतिम मिनट में हारी। 52वे मिनट तक जापान मैच का राजा था और सबको लगने लगा था कि बेल्जियम भी जर्मनी, अर्जेंटीना, पुर्तगाल और स्पेन जैसे उलटफेर का शिकार बनेगा। लेकिन बेल्जियम ने अंतिम 20 मिनट में पागलों जैसा फुटबॉल खेलकर जापानियों का दिल तोड़ दिया। ऐसे में एक आम दर्शक क्या करेगा? स्टेडियम की सीट्स पर गुस्सा निकालेगा, अपने होटल के कमरे में तोड़-फोड़ करेगा और सब कुछ गंदा कर देगा। जापानियों ने ऐसा कुछ नहीं किया। रोते-रोते भी पूरा स्टेडियम साफ किया। अपनी ही गंदगी नहीं, अन्य दर्शकों की गंदगी भी साफ की। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया और दुनिया भर में ये प्रशंसक मिसाल बन गए। साफ-सफाई को जापानी समाज का अनिवार्य अंग माना जाता है और उन्होंने वही किया जो उन्हें सिखाया जाता रहा है। हमारे

मैं क्यों एक उदारवादी नहीं हूँ।

यह कहना जरूरी हो गया था। कुछ लोग आजकल कथित 'हिन्दू नाजीवाद' से काफी आक्रांत दिख रहे और संघ उनके अनुसार हिटलर के 'एस एस' जैसा बर्ताव कर रहा। मैं मेजोरिटी से हूँ, हो सके मेरी दृष्टि से वह सब कुछ नहीं दिखता जोकि बाकी माइनॉरिटी को तब भी संघ को बखूबी जानता हूँ। उनका एक एजेंडा है, लेकिन यह कहना कि वे उसे लेकर हिंसक हैं या आक्रामक, निरा मूर्खता है। यह स्थिति बहुत दुखी करती है और यहाँ संघ का बचाव नहीं कर रहा। संघ की आड़ में जो हिन्दू धर्म को गाली दे रहे, इसकी भर्त्सना कर रहे, उससे मन व्यथित हो जाता है। उदारवाद क्या है? यही ना कि आप खुले मन से सारे विचारों को आत्मसात करें। इसमें आपके विरोधी मत भी शामिल हो सकते हैं। लेकिन पढ़े-लिखे विद्वान जब एक दूसरे की लानत-मलानत करते रहते हैं और इस बात का ध्यान रखें कि ऐसी बहसों में कोई नहीं जीतता तो मुझे ऐसे छद्म उदारवाद पर हंसी आती है। मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि मैं उदारवादी 'नहीं' हूँ। मुझे विरोधी खेमे की ना पचाये जा सकनी वाली बातें सही नहीं लगती लेकिन समाज के प्रति अपने कर्तव्य और अपनी छवि के अनुसार मैं मुखर नहीं हो सकता लेकि

इस्लामिक आतंकवाद, कट्टरता और यूरोप का छद्म उदारवाद: आज के विश्व की कड़वी सच्चाईयाँ

जर्मनी दक्षिण कोरिया से हारकर विश्व कप के ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गया। जर्मनी डिफेंडिंग वर्ल्ड चैंपियन था और अच्छी फॉर्म में भी लेकिन पहले मेक्सिको और बाद में कोरिया ने उन्हें सरप्राइज कर दिया। जर्मन इतना खराब खेले भी नहीं थे लेकिन सामने वाली टीम्स जरूर उनसे बीस साबित हुईं। ज़ाहिर सी बात है कुछ खिलाड़ियों के ऊपर इस निराशाजनक प्रदर्शन का दोष मढ़ा गया। मेसुत ओज़िल, जोकि तुर्किश मूल के जर्मन खिलाड़ी हैं और प्रीमियर लीग में आर्सेनल के लिए खेलते हैं, के प्रदर्शन को इसका सर्वप्रमुख कारण बताया गया। ओज़िल इस घटनाक्रम से बेहद आहत होकर इंटरनेशनल फुटबॉल से संन्यास ले लिए। ओज़िल का मैं बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। वह एक बेहद उम्दा खिलाड़ी, इंसान और रोल मॉडल हैं। जर्मन फुटबॉल फेडरेशन ने ना केवल उनके खेल को निशाना बनाया बल्कि उनकी तुर्किश एथनिसिटी, उनका वर्ल्ड कप से पहले तुर्की राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान से मिलना और उन्हें राइट विंग समर्थक और कट्टर मुसलमान बताना ओज़िल को नागवार गुजरा। उन्होंने कहा कि जब वह गोल किया करते थे तो जर्मनी को उनसे कोई समस्या नहीं थी लेकिन जब उनकी फॉर्म खराब हुई तो उन्हें मुसलमान और ब

फ़िल्मी परिचर्चा: धड़क

मैंने सैराट नहीं देखी है (हालाँकि मेरे पास दो साल से पड़ी हुई है और नाना पाटेकर साहब की नटसम्राट भी) लेकिन आज जो मैंने धड़क देखी, उससे मेरा काम चल गया। मुझे और कुछ देखना शेष नहीं रहा। ये 'नेपोटिस्म' पर विवाद करने वाले एक्टिंग या फिल्ममेकिंग का क, ख, ग जानते नहीं और आ जाते हैं भाई-भतीजावाद पर बोलने। आप दर्शक हैं, बोलिये, अपनी राय दें लेकिन कहानी पर, फ़िल्म की पेस पर नाकि एक्टिंग पर। ये स्टारकिड्स भी फ़िल्म के फ्लोर पर जाने से पहले महीनों वर्कशॉप में मेहनत करते हैं और फिर आपके सामने उनकी कला दिखती है। अनुराग कश्यप भी तो विनीत सिंह और नवाज़ुद्दीन को बहुत दिन से जानते थे लेकिन मौका 10-12 सालों बाद ही क्यों दिया। यह सब बेकार की बातें हैं और हाँ, मेरी तरफ से फ़िल्म को 10/10. अमूमन मैं हिंदी फिल्मों से नाराज़ रहता हूँ कि पहला हाफ बेहद मजबूत रहते हुए भी दूसरे हाफ में ये कमज़ोर पड़ जाती हैं। धड़क के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं था और यथार्थ दिखाया गया है। अगर आपने प्यार किया है तब तो आप इसे भूल ही नहीं पाएंगे। एक और बात, सैराट नहीं देखी है तो इसे बिल्कुल देखिये। अपने बलबूते ये टिपिकल हिंदी फिल्मों की जमा

हैप्पी 37th बर्थडे फेडरर

जब टेनिस देखना शुरू किया था तो उस समय दो बंदे बेहद हावी थे इस खेल पर। आंद्रे अगासी और पीट सम्प्रास। दोनों अमेरिका के और दोनों बेहतरीन खिलाड़ी। अगासी कैरियर की शुरुआत से ही बड़े बालों के शौकीन और गैर-पारम्परिक टेनिस खेलने के हिमायती थे। पीट उनके बिल्कुल उलट थे और एक कुशल, आला दर्जे की जर्मन मशीनरी जैसे कम से कम खतरे उठाने वाली टेनिस खेलते थे। इसका उन्हें फायदा हुआ और 14 ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट जीतकर वे 21वी शताब्दी के पहले दशक के सबसे अच्छे टेनिस खिलाड़ी बनकर उभरे। सम्प्रास शारीरिक रूप से भी अगासी से बीस दिखते थे और टेनिस जैसे मेहनती खेल में शारीरिक मजबूती मेरे हिसाब से काफी मायने रखती है। सम्प्रास अपनी भावनाओं को खेल के ऊपर कभी हावी नहीं होने देते थे और हमेशा एक उम्दा प्रोफेशनल जैसे दिखते थे चाहे वह टेनिस कोर्ट हो या सार्वजनिक जीवन। शायद उनका यह अंतर्मुखी व्यक्तित्व ही उन्हें टेनिस की दुनिया का एक बेहतरीन रोल मॉडल नहीं बना पाया। इसके उलट अगासी ने स्टेफी ग्राफ से शादी की जो मार्गरेट कोर्ट के बाद महिला टेनिस के इतिहास की महानतम खिलाड़ी हैं। अगासी सार्वजनिक रूप से ज्यादा प्रसिद्ध और चहेते बने