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Showing posts from February, 2018

The Handmaiden (2016): Park Chan Wook's Another 'Heady' Masterpiece

South Korean films have been breaking new Cinematic grounds for quite a while now. The latest masterpiece from soil of Seoul is Park Chan Wook's 'The Handmaiden'. Adopted from the acclaimed Booker prize nominated novel of Sarah Waters' 'Fingersmith', it changes the setting of Victorian Era of Britain from the novel to Japan occupied Korea for its purpose. Headlined by the precocious talents of Kim Min-Hee, Kim Tae-Ri and Ha-Jung Woo, it tells us a story of deceit, slavery, mental torture and love; all wrapped in the garb of eroticism. By its sheer force, it announces the arrival of 'erotic thrillers' back to filmgoers' reckoning. It came to my knowledge when I was going through the list of Bafta Winners for this year. Out of curiosity, I looked over it on internet and when I found out it was helmed by Park Chan Wook who has given us 'Oldboy', a worldwide smash hit some 10 years ago, I had to see it. Park Chan Wook is a visionary filmmake

The Leftovers: A Very 'Special' HBO Production

Three things that have occupied my mind for last three days in descending order of importance are: Justin Trudeau, Heinrich Klassen and The Leftovers. I am going to write here about the least important entity for I am likely to forget about it most urgently. The Leftovers is an HBO production and like the most HBO productions, it makes for a great television experience. I chose to watch it for two reasons: First, it was only three season long with 28 episodes in total and secondly, for two years running, it was the best TV show in American Landscape. There was a third reason as well and it was in the name of its creator's promise. Damon Lindelof is one of the brightest American minds and he gave us 'Lost' all those years back. I have been a huge fan of 'Lost' and till this time, gush about its fantastical and mythical elements. People still find it very hard to crack the mysteries of Lost and when a show leaves you with more questions than the answers after its 8

A 'Fairy tale' Indian Sports Scenario Post 27th January, 2018 (And The Incredible and Now No.1 Roger Federer)

भारतीय खेलों के परिदृश्य में एक बेहद अद्भुत घटनाक्रम की शुरुआत हुई 27th जनवरी की ढलती शाम को। जोहानसबर्ग टेस्ट मैच। चौथा दिन। भारत श्रृंखला में 2-0 से पीछे और अब अपने गौरव के लिए जूझता हुआ। तीसरे दिन यानी 26 जनवरी को जो हुआ था, उसे शायद ही कोई भारतीय क्रिकेट प्रेमी भूले। एक बेहद मुश्किल पिच और एक बेहद कुशल और आक्रामक गेंदबाज़ी के आगे हमारे बल्लेबाज़ों ने हमें एक मैच जिताऊ बढ़त दिला दी थी। उनके कौशल की उस रात पूरे विश्व में दाद दी गयी। पर चौथे दिन के लंच पर मैच बराबरी की स्थिति में पहुँच चुका था। अमला और एल्गर ने ठान लिया था कि वो भारतीयों को आसानी से मैच नहीं जीतने देंगे। वांडरर्स में वैसा माहौल मुझे बहुत सालों बाद देखने को मिला जब क्रिकेट दर्शकों और खिलाड़ियों के लिये प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था। पूरे स्टेडियम में एक नर्वस एनर्जी। लेकिन अंततः अमला ऑउट हुए और फिर डि विलिएयर्स। मैच, गौरव, नंबर 1 की रैंक, सब अपनी मुठ्ठी में। अविस्मरणीय!!! 28th को तो उससे भी जुदा कुछ हुआ और यह भारत ही नही, पूरे विश्व के लिए अविश्वसनीय था। रॉजर फेडरर, उम्र 36 साल और ग्रैंड स्लैम नंबर 20. उन्होंने साबित कर दि

सिविल सेवा परीक्षा: सर्वश्रेष्ठ 'हिंदी' निबंध पुस्तक

कल हमारे मित्र और पुराने सहयोगी मनीष तिवारी जी ने अपने इस ग्रुप के वरिष्ठ जनों की सलाह पर विकास दिव्यकिर्ति और निशांत जैन द्वारा लिखित निबंध आधारित पुस्तक 'निबंध दृष्टि' अमेज़न पोर्टल से मंगाई। यह जानते हुए भी कि मैं अपने निबंध अंग्रेज़ी में लिखूंगा, उन्होंने वह किताब मुझे पढ़ने के लिए दी। इसमें कोई दोराय नहीं है कि हिंदी पट्टी के प्रदेशों की प्रशासनिक परीक्षाओं के लिए डिफ़ॉल्ट भाषा हिंदी ही होती है जबकि आईएएस के लिए वह शुरू से ही अंग्रेज़ी रही है। यहाँ मैं एक बात निर्भीकता से स्पष्ट करना चाहूंगा कि आप किसी भाषा से बिल्कुल ना डरें। विश्व की सारी प्रमुख भाषाओं में सबसे कठिन व्याकरण मेरी जानकारी में फ्रेंच का माना जाता है और अगर लोग यूट्यूब वीडिओज़ से उसे सीख सकते हैं तो इंग्लिश तो बेहद आसान भाषा है। फिर हर नई बात में अभ्यस्त होने के लिए लगन की जरूरत होती ही है। लोग पूछते हैं अंग्रेज़ी कैसे आएगी? अरे पूरे विश्व की भाषा है वो, ऐसे रात बिरात रट्टा मारने से या 2 महीने उपन्यास/टाइम्स ऑफ इंडिया पढ़ने से थोड़े ही आएगी। अंग्रेज़ी का समावेशी स्वभाव ही उसे विशिष्ट बनाता है जैसे हिंदी में आप बीसियों

अंडरटेकर की मिथकीय विरासत के भावी झंडाबरदार

यह एक फ़ोटो है। क्या समझते हैं आप इससे? मैं बताता हूँ क्योंकि कई लोग या तो नाराज़ हो जाएंगे इसे देखकर या नासमझी में खीसें निपोर देंगे। यहाँ अपर हॉफ में अंडरटेकर है जिसके साथ चुन्नू मुन्नू जॉन सीना, मिज़, जेफ हार्डी और रैंडी ओर्टन हैं। आज की तारीख में ये चारों ग्लोबल सुपरस्टार्स हैं जिन्हें देखने के लिए लाखों की भीड़ दुनिया में कहीं भी उमड़ पड़ती है। यही असलियत लोअर हॉफ में दिखाई गई है, साथ में यह भी कि अंडरटेकर की मिथकीय विरासत को संभालने की ज़िम्मेदारी अब इन्हें या इनकी आगे आने वाली पीढ़ी की होगी। टेकर को एक 'चूहा' जैसा दिखाया है लोअर हॉफ में, क्रोध आया देख कर। बाकी 300 लोगों को भी आया ओरिजिनल पोस्ट पर लेकिन इस फोटो का महत्व केवल इन सबके 'चित्रांकन' तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। टेकर ने कइयों को बनाया। लॉकर रूम लीडर था वो और आज भी है जब भी उसमें घुसता है। क्रिस बेनवॉ भी था। एक बार किसी ने HHH के साथ बदतमीज़ी की तो क्रिस ने 100 पुश अप्स करवाये और जब 100 खत्म हुए तो 50 और। अंडरटेकर ने स्टोन कोल्ड स्टीव ऑस्टिन को लॉकर रूम और WWE से बाहर निकाल दिया जब उसने Brock से हारने को मन

विश्व क्रिकेट की असमानताएं: एक उदहारण "ज़िम्बाब्वे क्रिकेट"

हम सारे क्रिकेट प्रशंसक ज़िम्बाब्वे क्रिकेट के साथ 90 के दशक में एक रोमांटिक रिलेशनशिप रखते थे। उनके पास कुछ बेहतरीन खिलाड़ी तो कुछ बेहद जुझारू खिलाड़ियों की फौज थी। खेल में हार जीत लगी रहती है और वो अक्सर हारते ही थे लेकिन उनका हौसला, उनका हुनर काबिलेतारीफ था। 1992 में टेस्ट क्रिकेट की आधिकारिक सदस्यता पाने के बाद और अगले कुछ सालों के भरोसेमंद प्रदर्शन ने यह बात सबके दिमाग में डाल दी थी कि केवल दक्षिण अफ्रीका ही अब अफ्रीका महाद्वीप में क्रिकेट का इकलौता झंडाबरदार नहीं रह गया है। फिर ODI क्रिकेट में केन्या की टीम भी थी जिसने 1996 विश्व कप में विंडीज़ की बेहद मजबूत टीम को 93 पर ऑल ऑउट करके अपने प्रतिभा की बेहद शानदार झलक सबको दिखला दी थी। मैं उनके खिलाड़ियों के नाम और उनको TV पर हमेशा देखने की उत्सुकता लिए बैठा रहता था। मौरिस ओदुम्बे, थॉमस ओडोयो, स्टीव टिकोलो, रविन्दु शाह, मार्टिन सूजी और आसिफ करीम जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों ने केन्याई क्रिकेट की बहुत सेवा की और उनका 2003 के विश्व कप का प्रदर्शन क्रिकेट प्रशंसकों को शायद ही कभी भूलेगा। हाल फिलहाल में नामीबिया की टीम काफी बहादुरी से विश्व क्रिकेट

भारतीय प्रशासनिक सेवा : कुछ गंभीर विरोधाभास

इस बार की सिविल सर्विसेज परीक्षा में सबको पदों की संख्या पता चल गई है। पिछली बार से 20% सीटें कम हो गयी हैं और ये 15-20% वाला क्रम पिछले 6 सालों से चल रहा है। अब सैंपल साइज इतना बड़ा हो गया है कि आराम से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह सरकार रोज़गार के मुद्दे पर बेहद उदासीन है। खासतौर पर तब जब हम आये दिन समाचार सुनते या देखते रहते हैं कि फलाना विभाग में इतनी जगहें खाली हैं। खुद सरकार स्वीकारती है ये धीर, गंभीर बड़ी संख्याएँ। इनके पास मिसाइल खरीदने या बनाने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये हैं और उन्हें वो खरीदकर या बनाकर जंग खाने के लिए छोड़ देते हैं। कितने यूद्ध हो रहे हैं चीन या पाकिस्तान के साथ या कौन सा तीसरा विश्व युद्ध हम लड़ रहे हैं। हाँ, पाकिस्तान के साथ वाकयुद्ध खूब चलता है। और ये उनका सच में कुछ बिगाड़ नहीं सकते क्योंकि वो वास्तव में एक गैर जिम्मेदार परमाणु शक्ति सम्पन्न राज्य है। कब एक मिसाइल दिल्ली पर छोड़ दे, पता नहीं लेकिन यदि परमाणु युद्ध छिड़ भी जाये तो उतने हथियार शायद हमारे पास हैं और वो दो दिन का युद्ध होगा, 20 दिन का नहीं। सो आपके पास हज़ारों करोड़ रुपया खर्च करने का विवेकपूर्ण त

उभरते भारत की 'एक्ज़िस्टेंसिअल क्राइसिस'

MBA में हम लोगों को Maslow's hierarchy of needs के बारे में बताया गया था। उसका सार यही था कि एक बार इंसान की मूलभूत आवश्यकताऐं पूरी हो जाएं जैसे रोटी, कपड़ा और मकान तो वो खुद को पहचानने की कोशिश में लग जाता है। उसे स्ट्रेस, एंग्जायटी और बाकी परेशानियाँ होने लगती हैं यदि वो अपने को जान, पहचान नहीं पाता। अक्सर हॉलीवुड की फिल्मों में हम आपने ऐसे किरदारों को देखा हुआ है जिनके पास खूब पैसा रुपया होता है लेकिन बड़े परेशान से दिखते हैं। हमें समझ नहीं आता कि आखिर इन सबको है किस चीज़ की बेचैनी। सब कुछ तो है ही इन सबके पास। दरअसल यह एक संकट है भाइयों जो कि अब मेट्रो शहरों के लोगों को अपने देश में भी होने लगा है। Existential Crisis बोलते हैं इसे अंग्रेज़ी में। किसी मजदूर को नहीं हो सकता यह लेकिन बड़े लोग बड़े परेशान रहते हैं। कइयों को लगता है कि सब कुछ पा लिया ज़िन्दगी में, अब आगे क्या? उद्देश्य नहीं रहता उनके पास और वो सुसाइडल तक हो जाते हैं उसके बारे में सोचते सोचते। एक दो लोगों को मैं भी जानता हूँ ऐसे और बाकियों जैसे मैं भी उनको देख कर परेशान हो जाता हूँ कि भाई लोग, काहें इतना सोचते हो? देश अपना

भारतीय मध्यक्रम बल्लेबाज़ी:नई सोच की जरूरत

जब एक प्रतिभाशाली या अनुभवी गेंदबाज एक सीमित ओवर्स के मैच के आखिरी ओवर्स में ऑफ स्टंप के ऊपर फुलर लेंथ या यॉर्कर लेंथ की गेंद फेंकता है तो आज का युवा बल्लेबाज़ उसे रैंप करता है और विकेटकीपर के या तो सिर के ऊपर से या दाहिने / बाएं साइड से निकाल कर रन बटोरता है खासतौर पर तब जब फाइन लेग और थर्ड मैन का फील्डर 30 गज के दायरे में खड़ा किया गया हो। मैंने अज़हरुद्दीन को '99 WC में क्लूजनर को यॉर्कर के ऊपर डीप में स्क्वायर लेग के ऊपर चौका मारते देखा था। उस समय अज़हर विश्व क्रिकेट में शायद योर्कर्स सबसे अच्छा खेलते थे। अब अज़हर हैदराबादी जादूगर थे जिनकी कलाइयां गेंद की दिशा मोड़ने में माहिर थीं। अब हम धोनी से जो कि एक बेहद मजबूत बॉटम हैंडेड प्लेयर हैं, वैसे शॉट्स लगाने की उम्मीद नहीं कर सकते। खासतौर पर तब जब आपकी पहली प्राथमिकता गेंद को लांग ऑन और लांग ऑफ पर खेलने की हो या उनके बीच के V में। बॉल अगर धीमे पड़ गयी तो वो हवा में जाएगी और आप काफी आसानी से कैच कर लिए जाएंगे। तो हमारे पास इस स्क्वाड कुछ बल्लेबाज़ हैं जो कि ऐसे रैंप शॉट्स खेल सकते हैं। मसलन दिनेश कार्तिक जो कि भारतीय टीम से अक्सर बाहर रह

Racing Extinction (2015) : A Commentary

It's really hard to switch on to a different language from the one you have constantly been tinkering with. I grew so accustomed to writing in Hindi in last few days that it started dawning on me that I might never be good again with my English. So this is a tester, ladies and gentlemen. Yesterday, one of my movie group friends, an American by nationality, questioned my fondness of documentaries. I specifically wrote in one of my columns that documentaries demand your unwavering attention and once you gave 'that' to them, you are rewarded much more handsomely than a proper, narrative, fictitious film. My reasoning for believing so is that a documentary is an experience of a creative process. It doesn't get made to 'entertain' you. They are there to reveal something to you. They teach you something. You get overwhelmed by them. 'Racing Extinction (2015)' was one such documentary. I watched it in last couple of days. I couldn't complete it in one