यह डे-वे कहाँ से आ जा रहे, पता नहीं चल रहा। जो लोग 'प्यूरिस्ट' हैं, वे कहते हैं 'सब दिन एक बराबर'। जो लोग समय का तकाजा लिए जी रहे हैं, उनके लिये ये 'मौके' हैं। मैं तिरस्कार नहीं कर सकता इन 'डे' बनाने वालों का क्योंकि कृतज्ञता प्रकट करना कोई आसान काम नहीं है। इन 'डेज' में हिम्मत और टूल्स आ जाते हैं आपके पास जो आपकी हिचक मिटा जाते हैं।
यूट्यूब देखने वाले कल परसो से एक ऐड देख रहे होंगे डोमिनोज पिज़्ज़ा का। एक पुत्र अपनी बूढ़ी माता जी को यह कहकर वृद्धाश्रम छोड़ आता है कि उसके और उसकी पत्नी के पास समय नहीं है इनकी देखभाल का। प्रेम और आत्मीयता प्रगाढ़ है वैसे, आप देख के कह सकते हैं। बेटे को पिज़्ज़ा बहुत पसंद है और माँ वृद्धाश्रम में अपने काम से की हुई कमाई से एंड्रॉइड फ़ोन पर बेटे के मनपसंद पिज़्ज़ा का आर्डर दे देती है। लड़का वो पिज़्ज़ा लेकर सीधे माँ के पास आता है, साथ मे पत्नी और बेटी भी हैं। सब राज़ी-खुशी।
वीडियो यह नहीं दिखाता टिपिकल बॉलीवुड जैसे कि माँ अब घर आ गयी है। ना, क्योंकि समाज अब बदल रहा है। आप उस पुत्र की भर्त्सना नहीं कर सकते जो लाख कोशिशों के बावजूद भी अपनी माँ का ख्याल नहीं रख सकता। 'माँ भूलती नहीं', यह ऐड की टैगलाइन है लेकिन माँ समझती भी है। बुढ़ापे में माँ-बाप 'फ्री' हो ही जाते हैं क्योंकि ताउम्र आपही को देखते रह जाते हैं और अब आप खुद अपनी परेशानियों और परिवार से घिरे। उन दोनों को आप ही चाहिए लेकिन आपका समय खुद आपका कहाँ है? इसी जद्दोजहद में दोनों पार्टीज चैन से नहीं रह पाती और अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती हैं।
यह जीवन की उन 'नई' शाश्वत समस्याओं में से एक हैं जिसकी मानव प्रजाति अभी तक काट नहीं खोज पाई है औऱ जैसा कि इस प्रकृति की समस्याओं के साथ होता है, शायद ढूँढ़ भी ना पाए। बहुत संभव है कि हम आप भी इसी से गुज़रें। तब तक चिंतन-मनन करें और अपने माँ-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदारों के साथ ज़िन्दगी और इन 'डेज' का लुत्फ उठाएं। और हाँ, अगर समस्या की काट अभी ही आपके पास हो तो शीघ्रातिशीघ्र साझा करें।
यूट्यूब देखने वाले कल परसो से एक ऐड देख रहे होंगे डोमिनोज पिज़्ज़ा का। एक पुत्र अपनी बूढ़ी माता जी को यह कहकर वृद्धाश्रम छोड़ आता है कि उसके और उसकी पत्नी के पास समय नहीं है इनकी देखभाल का। प्रेम और आत्मीयता प्रगाढ़ है वैसे, आप देख के कह सकते हैं। बेटे को पिज़्ज़ा बहुत पसंद है और माँ वृद्धाश्रम में अपने काम से की हुई कमाई से एंड्रॉइड फ़ोन पर बेटे के मनपसंद पिज़्ज़ा का आर्डर दे देती है। लड़का वो पिज़्ज़ा लेकर सीधे माँ के पास आता है, साथ मे पत्नी और बेटी भी हैं। सब राज़ी-खुशी।
वीडियो यह नहीं दिखाता टिपिकल बॉलीवुड जैसे कि माँ अब घर आ गयी है। ना, क्योंकि समाज अब बदल रहा है। आप उस पुत्र की भर्त्सना नहीं कर सकते जो लाख कोशिशों के बावजूद भी अपनी माँ का ख्याल नहीं रख सकता। 'माँ भूलती नहीं', यह ऐड की टैगलाइन है लेकिन माँ समझती भी है। बुढ़ापे में माँ-बाप 'फ्री' हो ही जाते हैं क्योंकि ताउम्र आपही को देखते रह जाते हैं और अब आप खुद अपनी परेशानियों और परिवार से घिरे। उन दोनों को आप ही चाहिए लेकिन आपका समय खुद आपका कहाँ है? इसी जद्दोजहद में दोनों पार्टीज चैन से नहीं रह पाती और अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती हैं।
यह जीवन की उन 'नई' शाश्वत समस्याओं में से एक हैं जिसकी मानव प्रजाति अभी तक काट नहीं खोज पाई है औऱ जैसा कि इस प्रकृति की समस्याओं के साथ होता है, शायद ढूँढ़ भी ना पाए। बहुत संभव है कि हम आप भी इसी से गुज़रें। तब तक चिंतन-मनन करें और अपने माँ-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदारों के साथ ज़िन्दगी और इन 'डेज' का लुत्फ उठाएं। और हाँ, अगर समस्या की काट अभी ही आपके पास हो तो शीघ्रातिशीघ्र साझा करें।
Comments
Post a Comment