टेस्ट क्रिकेट में महानता के दो पैमाने: 50 से ज्यादा का बैटिंग एवरेज और ऑस्ट्रेलिया में शतक।
V V S लक्ष्मण और सौरव गाँगुली दोनों के पास दूसरा पैरामीटर था, पहला नहीं। लक्ष्मण का कैरियर एवरेज 45 और गाँगुली का 42। 40+ बैटिंग एवरेज मतलब आप बहुत अच्छे हो और टेस्ट क्रिकेट खेल सकते हो। 50 का मतलब आप महान हो और गिने चुने बेहतरीन खिलाड़ियों की जमात में हो।
संगकारा ने गाँगुली के कैरियर समाप्ति पर एक लेख लिखा था। ट्रिब्यूट था वह। ऊपर जो दो पैरामीटर्स मैंने सुझाये हैं, वे बिल्कुल भी सही या तर्कसंगत नहीं हैं लेकिन बहुतायत ऐसा सोचते हैं। आजकल के बेचारे नये खिलाड़ी टेस्ट मैच में एक शतक बना लें, वही बड़ी बात है, 15-20 तो दूर की कौड़ी है। मैं तो ग्रेम हिक और मार्क रामप्रकाश को भी अपने खेल के महानतम खिलाड़ियों में गिनता हूँ कि क्योंकि उन्हें महारत हासिल थी, यद्यपि टेस्ट मैच में उनका कैरियर 30+ के औसत के साथ खत्म हुआ। तो संगकारा की बात पर आते हैं। गाँगुली उनके आदर्श थे। सोचिए 21वीं के महानतम खिलाड़ियों में से एक का आदर्श वह खिलाड़ी जिसका औसत पहले से 15 पॉइंट कम लेकिन संगकारा का मानना था कि गाँगुली अगर 6 नंबर पर बल्लेबाजी नहीं करते तो बड़े आराम से 50 के औसत के साथ रिटायर होते। बड़े खिलाड़ी वह दृष्टिकोण रखते हैं जो हम जैसे दर्शक नहीं रख सकते क्योंकि हमने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेला हुआ है। गाँगुली की कप्तानी ने उनकी बैटिंग उपलब्धियों को बुरी तरह से प्रभावित किया जबकि केवल औसत की बात की जाए तो गाँगुली 'एक बहुत अच्छे टेस्ट क्रिकेटर' और वनडे क्रिकेट के 'सर्वकालिक महानतम' खिलाड़ी हैं।
अब बात लक्ष्मण की। 1999-2000 का भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा किसी हिसाब से उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता। पहले टेस्ट में गाबा में हम बुरी तरह हारे। सिडनी में लक्ष्मण के इस बेहतरीन और बेहद यादगार शतक के बावजूद भी हम हारे क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने आल-राउंड प्रदर्शन किया। तीसरे टेस्ट में मेलबर्न में हालात इतने निराशाजनक थे कि सचिन की कप्तानी पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। सचिन ने 125 रनों की शानदार पारी खेली लेकिन एक बार फिर बाकी के बैट्समेन के फैल होने पर हम हार गये। आप मैक्ग्रा को बोलिंग करते देखिये। इतना शार्प, इतना तेज। बिल्कुल आदर्श तेज़ गेंदबाज़ी फिर 22 साल के ब्रेट ली जिन्हें उस समय मैदान पर केवल खून देखने की आदत थी। भारत के पास कोई चांस नहीं था और वह ऑस्ट्रेलिया के सुनहरा दौर था। लेकिन तब भी लक्ष्मण ने सिडनी के इस एक पारी से ऑस्ट्रेलिया को दिखा दिया कि अगले 10 साल उसके लिए कितने दुखदायी रहने वाले हैं। ऑस्ट्रेलिया को लक्ष्मण से जितना डर लगा, उतना शायद केवल लारा ने उन्हें डराया था। लक्ष्मण की यह पारी यह भी प्रूव करती है कि एक प्रॉपर डिफेंसिव टेक्निक के बिना आप विदेशी धरती पर सफल नहीं हो सकते। यह पारी लक्ष्मण के कैरियर की हाईलाइट रील कही जा सकती है जिसमे उनके सारे सिग्नेचर शॉट्स हैं प्लस वे नौजवान भी हैं।
और शेन वार्न, सदी के महानतम लेग स्पिनर, एक बार फिर सोचने पर मजबूर कि ये भारतीय सबको अपना विकेट दे देंगे लेकिन मुझे क्यों नहीं.....
महानता का एक और सुबूत!!!
V V S लक्ष्मण और सौरव गाँगुली दोनों के पास दूसरा पैरामीटर था, पहला नहीं। लक्ष्मण का कैरियर एवरेज 45 और गाँगुली का 42। 40+ बैटिंग एवरेज मतलब आप बहुत अच्छे हो और टेस्ट क्रिकेट खेल सकते हो। 50 का मतलब आप महान हो और गिने चुने बेहतरीन खिलाड़ियों की जमात में हो।
संगकारा ने गाँगुली के कैरियर समाप्ति पर एक लेख लिखा था। ट्रिब्यूट था वह। ऊपर जो दो पैरामीटर्स मैंने सुझाये हैं, वे बिल्कुल भी सही या तर्कसंगत नहीं हैं लेकिन बहुतायत ऐसा सोचते हैं। आजकल के बेचारे नये खिलाड़ी टेस्ट मैच में एक शतक बना लें, वही बड़ी बात है, 15-20 तो दूर की कौड़ी है। मैं तो ग्रेम हिक और मार्क रामप्रकाश को भी अपने खेल के महानतम खिलाड़ियों में गिनता हूँ कि क्योंकि उन्हें महारत हासिल थी, यद्यपि टेस्ट मैच में उनका कैरियर 30+ के औसत के साथ खत्म हुआ। तो संगकारा की बात पर आते हैं। गाँगुली उनके आदर्श थे। सोचिए 21वीं के महानतम खिलाड़ियों में से एक का आदर्श वह खिलाड़ी जिसका औसत पहले से 15 पॉइंट कम लेकिन संगकारा का मानना था कि गाँगुली अगर 6 नंबर पर बल्लेबाजी नहीं करते तो बड़े आराम से 50 के औसत के साथ रिटायर होते। बड़े खिलाड़ी वह दृष्टिकोण रखते हैं जो हम जैसे दर्शक नहीं रख सकते क्योंकि हमने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेला हुआ है। गाँगुली की कप्तानी ने उनकी बैटिंग उपलब्धियों को बुरी तरह से प्रभावित किया जबकि केवल औसत की बात की जाए तो गाँगुली 'एक बहुत अच्छे टेस्ट क्रिकेटर' और वनडे क्रिकेट के 'सर्वकालिक महानतम' खिलाड़ी हैं।
अब बात लक्ष्मण की। 1999-2000 का भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा किसी हिसाब से उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता। पहले टेस्ट में गाबा में हम बुरी तरह हारे। सिडनी में लक्ष्मण के इस बेहतरीन और बेहद यादगार शतक के बावजूद भी हम हारे क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने आल-राउंड प्रदर्शन किया। तीसरे टेस्ट में मेलबर्न में हालात इतने निराशाजनक थे कि सचिन की कप्तानी पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। सचिन ने 125 रनों की शानदार पारी खेली लेकिन एक बार फिर बाकी के बैट्समेन के फैल होने पर हम हार गये। आप मैक्ग्रा को बोलिंग करते देखिये। इतना शार्प, इतना तेज। बिल्कुल आदर्श तेज़ गेंदबाज़ी फिर 22 साल के ब्रेट ली जिन्हें उस समय मैदान पर केवल खून देखने की आदत थी। भारत के पास कोई चांस नहीं था और वह ऑस्ट्रेलिया के सुनहरा दौर था। लेकिन तब भी लक्ष्मण ने सिडनी के इस एक पारी से ऑस्ट्रेलिया को दिखा दिया कि अगले 10 साल उसके लिए कितने दुखदायी रहने वाले हैं। ऑस्ट्रेलिया को लक्ष्मण से जितना डर लगा, उतना शायद केवल लारा ने उन्हें डराया था। लक्ष्मण की यह पारी यह भी प्रूव करती है कि एक प्रॉपर डिफेंसिव टेक्निक के बिना आप विदेशी धरती पर सफल नहीं हो सकते। यह पारी लक्ष्मण के कैरियर की हाईलाइट रील कही जा सकती है जिसमे उनके सारे सिग्नेचर शॉट्स हैं प्लस वे नौजवान भी हैं।
और शेन वार्न, सदी के महानतम लेग स्पिनर, एक बार फिर सोचने पर मजबूर कि ये भारतीय सबको अपना विकेट दे देंगे लेकिन मुझे क्यों नहीं.....
महानता का एक और सुबूत!!!
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