मोहिंदर अमरनाथ, रॉजर बिन्नी, मदनलाल और बलविंदर सिंह संधू
बनाम
एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग और जोएल गार्नर
किस चौकड़ी के ऊपर दाँव खेलना चाहेंगे? बैटिंग की बात करनी है तो वो भी कर लेते हैं।
गावस्कर, मोहिंदर, संदीप पाटिल, कपिल देव
बनाम
गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हैन्स, विव रिचर्ड्स, लॉयड, लैरी गोमेज
अब?
मैं निस्संदेह भारत को छोड़कर दूसरी टीम पर पैसे लगाऊंगा।
ठीक 35 साल पहले सट्टे का भाव 66:1 था। अगर जिसने भारत के ऊपर उस दिन पैसे लगाए होंगे, 66 गुना ज्यादा अमीर हुआ होगा।
भारत को भी पता नहीं था कि आगे आने वाले समय में वह वर्ल्ड कप जीत क्रिकेट परिदृश्य को कैसे बदल कर रख देगी। जब कपिल लार्ड रोबर्ट कार से ट्रॉफी स्वीकार कर रहे थे, उन्हें इस बात की बिल्कुल आशंका नहीं थी कि अगला विश्व कप इंग्लैंड में नहीं खेला जाएगा। पिछले 3 लगातार इंग्लैंड में हुए थे, तीनों फाइनल्स लॉर्ड्स में खेले गए थे और दो विंडीज़ ने बड़ी शान से जीते थे। पर्दे के पीछे एक बात हुई और मैदान पर एक और।
बीबीसी, जोकि 83 वर्ल्ड कप का प्रसारणकर्ता था, कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से टनब्रिज ओवल में अपने वीडियो कैमरों के साथ नहीं था। भारत और ज़िम्बाब्वे का मैच था। डंकन फ्लेचर जोकि बाद में भारत और इंग्लैंड के हेड कोच बने, ज़िम्बाब्वे के कप्तान थे। भारत का स्कोर 9/4 और बाद में 17/5 था। फिर कपिल ने 138 बॉल्स पर 175 रन ठोंक डाले। 16 चौके, 6 छक्के। आईपीएल टाइप इनिंग्स। 1979 के फाइनल्स में विंव रिचर्ड्स और कॉलिस किंग ने कुछ ऐसी ही शानदार पारियां खेलकर इंग्लैंड को अपने दम पर हरा दिया था। कपिल की पारी विश्व कप के इतिहास की महानतम पारियों में से एक है और जब वह खत्म हुई, जिम्बाब्वे मानसिक रूप से ही हार चुका था।
उसके बाद ऑस्ट्रेलिया को हमने सरप्राइज दिया। सेमीफाइनल में सबको विश्वास था कि इंग्लैंड हमें पीट देगा। हमने उन्हें बहुत आराम से उन्हें पीट दिया। सट्टे में उस दिन भी बहुत लोग पैसा जीते और हारे। लेकिन फाइनल का क्या? वेस्टइंडीज, सोचना भी मत।
फाइनल के पहले BCCI के तत्कालीन अध्यक्ष ने दो VIP पासेज के लिए एमसीसी से बिल्कुल अंतिम क्षणों में गुहार लगाई। एमसीसी शुरू से एक अक्खड़ संस्था रही है और उन्होंने BCCI प्रेसिडेंट को मना कर दिया। पर्दे के पीछे का घटनाक्रम यहीं से शुरू हुआ। प्रेसिडेंट साहब इतना नाराज़ हो गए कि पाकिस्तान और श्रीलंका को साथ मे लेकर धीरूभाई अंबानी से मिले और फिर अगला वर्ल्ड कप 'रिलायंस कप' के नाम से भारत, पाकिस्तान में ही आयोजित हुआ। इंग्लैंड को अगली मेज़बानी BCCI की मर्ज़ी से ही 16 सालों के बाद मिली।
87 तक TV युग आ चुका था। भारत के पिछले 4 वर्षों के दमदार प्रदर्शन के आधार पर उसे ही असली दावेदार माना जा रहा था लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सबसे कमजोर टीम के साथ वर्ल्ड कप अपने नाम कर लिया। 92 में सफेद गेंद, रंगीन कपड़े और डे-नाईट मैचेज़ आ गए थे और विंडीज़ का विश्व कप क्रिकेट में आधिपत्य समाप्त हो चुका था। क्रिकेट में पोलिटिकल इकॉनमी के एक नए अध्याय का सूत्रपात हो चुका था।
बलविंदर सिंह संधू को फाइनल्स में उनकी एक बेहतरीन, यादगार और कलात्मक इनस्विंगर के लिए जाना जाता है जिसपर उन्होंने ग्रीनिज को क्लीन बोल्ड किया था। उससे पहले 11वे नंबर पर बल्लेबाजी करते वक़्त मार्शल की एक बाउंसर उनके पटके पर लगी थी। क्रिकेट नैतिकता का खेल हुआ करता था उस समय लेकिन नैतिकता के नियम उस समय बने नहीं थे। बाउंसर लगने पर वह थोड़ी देर तक अपने बल्ले के सहारे नीचे झुके रहे। जेफ डुजों अपनी विकेटकीपिंग पोजीशन छोड़के उनका हालचाल पूछने आये। मार्शल ने उन्हें दिलासा नहीं दी लेकिन जब तक संधू दोबारा अपना स्टांस नहीं लिए, वे फॉलोथ्रू में बैठे अपने जूते के फीते बांधते रहे। अगली बाल पर संधू ने एक बेहतरीन ऑफ ड्राइव लगाई।
मोहिंदर अमरनाथ भारतीय क्रिकेट के महानतम सेवकों में से एक हैं। उनके पिताजी लाला अमरनाथ ने भारत क़ी सबसे पहली टेस्ट सेंचुरी इंग्लैंड के खिलाफ ही 1946 में लगाई थी। सुरिंदर अमरनाथ, उनके भाई ने टेस्ट डेब्यू में शतक लगाया था और राजिंदर अमरनाथ ने भी भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला। मोहिंदर अमरनाथ भारतीय क्रिकेट के ओरिजिनल 'कम बैक मैन' कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने करीब 11 मौकों पर भारतीय क्रिकेट में वापसी की। गावस्कर के बाद सबसे अच्छी तरह पेसर्स को खेलने वाले भारतीय बल्लेबाज वही थे। भारत का कोच बनने की उन्होंने तीन बार कोशिश की, उन्हें सफलता एक बार भी नहीं मिली। यह भारत का नुकसान है। लेकिन 25 जून, 1983 का दिन मोहिंदर का था। पहले 183 के टोटल में 26 रन्स बनाये और फिर अपनी मिलिट्री मध्यम तेज़ गेंदबाज़ी से 12 रन देकर 3 विकेट लिए। जब माइकल होल्डिंग को उन्होंने एलबीडबल्यू किया, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए वे भारतीय ड्रेसिंग रूम की ओर भागे। वह दौड़ जो उन्होंने उस दिन जश्न मनाते भारतीय दर्शकों से दूर जाने के लिए लगाई, वह दिन और आज का दिन, दुनिया क्रिकेट में हमारे पीछे ही दौड़ रही है।
25 जून, 1983 की संध्या को क्रिकेट बदल चुका था और उसी दिन भारतीयों ने यह कहावत सत्य कर दी कि क्रिकेट एक भारतीय खेल है जो मात्र संयोगवश अंग्रेजों ने ईजाद कर दिया।
बनाम
एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग और जोएल गार्नर
किस चौकड़ी के ऊपर दाँव खेलना चाहेंगे? बैटिंग की बात करनी है तो वो भी कर लेते हैं।
गावस्कर, मोहिंदर, संदीप पाटिल, कपिल देव
बनाम
गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हैन्स, विव रिचर्ड्स, लॉयड, लैरी गोमेज
अब?
मैं निस्संदेह भारत को छोड़कर दूसरी टीम पर पैसे लगाऊंगा।
ठीक 35 साल पहले सट्टे का भाव 66:1 था। अगर जिसने भारत के ऊपर उस दिन पैसे लगाए होंगे, 66 गुना ज्यादा अमीर हुआ होगा।
भारत को भी पता नहीं था कि आगे आने वाले समय में वह वर्ल्ड कप जीत क्रिकेट परिदृश्य को कैसे बदल कर रख देगी। जब कपिल लार्ड रोबर्ट कार से ट्रॉफी स्वीकार कर रहे थे, उन्हें इस बात की बिल्कुल आशंका नहीं थी कि अगला विश्व कप इंग्लैंड में नहीं खेला जाएगा। पिछले 3 लगातार इंग्लैंड में हुए थे, तीनों फाइनल्स लॉर्ड्स में खेले गए थे और दो विंडीज़ ने बड़ी शान से जीते थे। पर्दे के पीछे एक बात हुई और मैदान पर एक और।
बीबीसी, जोकि 83 वर्ल्ड कप का प्रसारणकर्ता था, कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से टनब्रिज ओवल में अपने वीडियो कैमरों के साथ नहीं था। भारत और ज़िम्बाब्वे का मैच था। डंकन फ्लेचर जोकि बाद में भारत और इंग्लैंड के हेड कोच बने, ज़िम्बाब्वे के कप्तान थे। भारत का स्कोर 9/4 और बाद में 17/5 था। फिर कपिल ने 138 बॉल्स पर 175 रन ठोंक डाले। 16 चौके, 6 छक्के। आईपीएल टाइप इनिंग्स। 1979 के फाइनल्स में विंव रिचर्ड्स और कॉलिस किंग ने कुछ ऐसी ही शानदार पारियां खेलकर इंग्लैंड को अपने दम पर हरा दिया था। कपिल की पारी विश्व कप के इतिहास की महानतम पारियों में से एक है और जब वह खत्म हुई, जिम्बाब्वे मानसिक रूप से ही हार चुका था।
उसके बाद ऑस्ट्रेलिया को हमने सरप्राइज दिया। सेमीफाइनल में सबको विश्वास था कि इंग्लैंड हमें पीट देगा। हमने उन्हें बहुत आराम से उन्हें पीट दिया। सट्टे में उस दिन भी बहुत लोग पैसा जीते और हारे। लेकिन फाइनल का क्या? वेस्टइंडीज, सोचना भी मत।
फाइनल के पहले BCCI के तत्कालीन अध्यक्ष ने दो VIP पासेज के लिए एमसीसी से बिल्कुल अंतिम क्षणों में गुहार लगाई। एमसीसी शुरू से एक अक्खड़ संस्था रही है और उन्होंने BCCI प्रेसिडेंट को मना कर दिया। पर्दे के पीछे का घटनाक्रम यहीं से शुरू हुआ। प्रेसिडेंट साहब इतना नाराज़ हो गए कि पाकिस्तान और श्रीलंका को साथ मे लेकर धीरूभाई अंबानी से मिले और फिर अगला वर्ल्ड कप 'रिलायंस कप' के नाम से भारत, पाकिस्तान में ही आयोजित हुआ। इंग्लैंड को अगली मेज़बानी BCCI की मर्ज़ी से ही 16 सालों के बाद मिली।
87 तक TV युग आ चुका था। भारत के पिछले 4 वर्षों के दमदार प्रदर्शन के आधार पर उसे ही असली दावेदार माना जा रहा था लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सबसे कमजोर टीम के साथ वर्ल्ड कप अपने नाम कर लिया। 92 में सफेद गेंद, रंगीन कपड़े और डे-नाईट मैचेज़ आ गए थे और विंडीज़ का विश्व कप क्रिकेट में आधिपत्य समाप्त हो चुका था। क्रिकेट में पोलिटिकल इकॉनमी के एक नए अध्याय का सूत्रपात हो चुका था।
बलविंदर सिंह संधू को फाइनल्स में उनकी एक बेहतरीन, यादगार और कलात्मक इनस्विंगर के लिए जाना जाता है जिसपर उन्होंने ग्रीनिज को क्लीन बोल्ड किया था। उससे पहले 11वे नंबर पर बल्लेबाजी करते वक़्त मार्शल की एक बाउंसर उनके पटके पर लगी थी। क्रिकेट नैतिकता का खेल हुआ करता था उस समय लेकिन नैतिकता के नियम उस समय बने नहीं थे। बाउंसर लगने पर वह थोड़ी देर तक अपने बल्ले के सहारे नीचे झुके रहे। जेफ डुजों अपनी विकेटकीपिंग पोजीशन छोड़के उनका हालचाल पूछने आये। मार्शल ने उन्हें दिलासा नहीं दी लेकिन जब तक संधू दोबारा अपना स्टांस नहीं लिए, वे फॉलोथ्रू में बैठे अपने जूते के फीते बांधते रहे। अगली बाल पर संधू ने एक बेहतरीन ऑफ ड्राइव लगाई।
मोहिंदर अमरनाथ भारतीय क्रिकेट के महानतम सेवकों में से एक हैं। उनके पिताजी लाला अमरनाथ ने भारत क़ी सबसे पहली टेस्ट सेंचुरी इंग्लैंड के खिलाफ ही 1946 में लगाई थी। सुरिंदर अमरनाथ, उनके भाई ने टेस्ट डेब्यू में शतक लगाया था और राजिंदर अमरनाथ ने भी भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला। मोहिंदर अमरनाथ भारतीय क्रिकेट के ओरिजिनल 'कम बैक मैन' कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने करीब 11 मौकों पर भारतीय क्रिकेट में वापसी की। गावस्कर के बाद सबसे अच्छी तरह पेसर्स को खेलने वाले भारतीय बल्लेबाज वही थे। भारत का कोच बनने की उन्होंने तीन बार कोशिश की, उन्हें सफलता एक बार भी नहीं मिली। यह भारत का नुकसान है। लेकिन 25 जून, 1983 का दिन मोहिंदर का था। पहले 183 के टोटल में 26 रन्स बनाये और फिर अपनी मिलिट्री मध्यम तेज़ गेंदबाज़ी से 12 रन देकर 3 विकेट लिए। जब माइकल होल्डिंग को उन्होंने एलबीडबल्यू किया, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए वे भारतीय ड्रेसिंग रूम की ओर भागे। वह दौड़ जो उन्होंने उस दिन जश्न मनाते भारतीय दर्शकों से दूर जाने के लिए लगाई, वह दिन और आज का दिन, दुनिया क्रिकेट में हमारे पीछे ही दौड़ रही है।
25 जून, 1983 की संध्या को क्रिकेट बदल चुका था और उसी दिन भारतीयों ने यह कहावत सत्य कर दी कि क्रिकेट एक भारतीय खेल है जो मात्र संयोगवश अंग्रेजों ने ईजाद कर दिया।
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