यह बात मेरे संज्ञान में तकरीबन दो हफ्ते पहले आयी थी। अरल सागर सूख गया। एक ऐसी वाटर बॉडी जोकि एक समय पर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इनलैंड वाटर बॉडी थी, आज दो भागों में विभक्त है। उत्तरी अरल सागर तो कज़ाख़स्तान सरकार ने बचा लिया लेकिन दक्षिणी अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। यह सब इस नई पीढ़ी के सामने हो गया और संभव है, बहुतों को पता भी नहीं चला।
स्टालिन कहा करते थे कि मनुष्य प्रकृति को विजित कर सकता है। इसी संकल्प से उन्होंने अरल सागर बेसिन में चेकडैम, कॉटन फील्ड प्रोजेक्ट और बिजली उत्पादक यूनिट्स की स्थापना की। कॉटन की खेती में पानी खूब लगता है, सो बहुत पानी इसमें लगा लेकिन आप कहेंगे कि यह सागर है, नमकीन पानी तो सब खराब कर दिया होगा तो अब भूगोल देख लेते हैं इस क्षेत्र का।
अरल सागर को दो नदियाँ अपने जल से भरती रही हैं। एक अमु दरया और दूसरा सिर दरया। आपने इन्हें खूब पढ़ा होगा। अमु दरया पामीर पहाड़ों से और सिर, तियानशान पहाड़ियों से उद्गम पाता है। इलाका सेंट्रल एशिया का है जहाँ आपको पता है कि भयंकर ठंडक पड़ती है, अतः ये पहाड़ बर्फ से ढके रहते हैं और गर्मीयों में इन नदियों को जलप्लावित किये रहते हैं। स्टालिन ने जब उपरिलिखित प्रोजेक्ट्स शुरू किए तो तुर्कमेनिस्तान वाले इलाके में भी पानी की समस्या थी। इसलिए एक 1400 किमी लंबी कुनलुन नहर अमु दरया से निकाली गयी। इतनी लंबी नहर से आप समझ सकते हैं कि कितने बड़े क्षेत्र में सिंचाई होती होगी, फलस्वरूप अमु का पानी कुनलुन में चला गया और अरल सूखता रहा। अरल में भी चूंकि चेकडैम बनाये गए थे (जोकि बालू के थे), अतः वहाँ भी एक इलाका जलमग्न और दूसरा सूखा था। धीरे-धीरे अरल सूखता गया और एक वक्त जिस अरल बेसिन में मछलीपालन जैसा उद्योग विकसित था, वहाँ मछलियां ही नहीं रह गयी। सागर का बचा खुचा पानी पहले के मुकाबले तीन गुना ज्यादा नमकीन हो गया है और घरेलू वनस्पतियों के टिप पॉइंट्स पर भी आप अब नमक देख सकते हैं। क्षेत्रीय शाकाहारी पशुओं की सेहत बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है और वे सरदर्द और पाचन तंत्र की गड़बड़ियों के कारण दम तोड़ रहे हैं।
कजाख सरकार को जब रूस से स्वतंत्रता मिली तो उन्होंने अपने हिस्से के सागर पर काम करना शुरू किया। राष्ट्रपति नजरबायेव के नेतृत्व में बालू के चेकडैम तोड़ दिये गये और अब दोनों सागर एक दूसरे से पुनः मिल चुके हैं। मछलियों की वापसी हो गई है, पानी की गुणवत्ता में भी सुधार है लेकिन पूरा अरल बेसिन क्षेत्र कई सौ स्क्वायर किमी सिकुड़ चुका है। लोकल अर्थव्यवस्था करीब 100 साल पीछे चली गयी है और पूरा क्षेत्र पलायनवादी हो चुका है। पुरानी मशीनों और कारखानों के अवशेषों के अलावा वहाँ अब कुछ नहीं बचा है।
कल आपने सुना होगा कि अंटार्कटिका की करीब 300 ट्रिलियन टन भार वाली आइस शीट पिघल चुकी है और इसने समुद्र का स्तर 7.4 मिमी बढ़ा दिया है। जिस दिन पूरा अंटार्कटिका पिघल गया, समुद्र स्तर 58 मीटर ऊपर उठ जाएगा। अभी नहीं होगा लेकिन अगले 500 साल में यह सब संभव है क्योंकि ये सब हमारे सामने पिछ्ले 60 सालों में ही हुआ है। अंटार्कटिका का केस तो मात्र 26 साल पुराना है।
बहरहाल तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात आज कुनलुन नहर की वजह से आबाद है और आप वहाँ विकास की नई इबारत, प्रकृति की कीमत पर लिखी, पढ़ सकते हैं।
स्टालिन कहा करते थे कि मनुष्य प्रकृति को विजित कर सकता है। इसी संकल्प से उन्होंने अरल सागर बेसिन में चेकडैम, कॉटन फील्ड प्रोजेक्ट और बिजली उत्पादक यूनिट्स की स्थापना की। कॉटन की खेती में पानी खूब लगता है, सो बहुत पानी इसमें लगा लेकिन आप कहेंगे कि यह सागर है, नमकीन पानी तो सब खराब कर दिया होगा तो अब भूगोल देख लेते हैं इस क्षेत्र का।
अरल सागर को दो नदियाँ अपने जल से भरती रही हैं। एक अमु दरया और दूसरा सिर दरया। आपने इन्हें खूब पढ़ा होगा। अमु दरया पामीर पहाड़ों से और सिर, तियानशान पहाड़ियों से उद्गम पाता है। इलाका सेंट्रल एशिया का है जहाँ आपको पता है कि भयंकर ठंडक पड़ती है, अतः ये पहाड़ बर्फ से ढके रहते हैं और गर्मीयों में इन नदियों को जलप्लावित किये रहते हैं। स्टालिन ने जब उपरिलिखित प्रोजेक्ट्स शुरू किए तो तुर्कमेनिस्तान वाले इलाके में भी पानी की समस्या थी। इसलिए एक 1400 किमी लंबी कुनलुन नहर अमु दरया से निकाली गयी। इतनी लंबी नहर से आप समझ सकते हैं कि कितने बड़े क्षेत्र में सिंचाई होती होगी, फलस्वरूप अमु का पानी कुनलुन में चला गया और अरल सूखता रहा। अरल में भी चूंकि चेकडैम बनाये गए थे (जोकि बालू के थे), अतः वहाँ भी एक इलाका जलमग्न और दूसरा सूखा था। धीरे-धीरे अरल सूखता गया और एक वक्त जिस अरल बेसिन में मछलीपालन जैसा उद्योग विकसित था, वहाँ मछलियां ही नहीं रह गयी। सागर का बचा खुचा पानी पहले के मुकाबले तीन गुना ज्यादा नमकीन हो गया है और घरेलू वनस्पतियों के टिप पॉइंट्स पर भी आप अब नमक देख सकते हैं। क्षेत्रीय शाकाहारी पशुओं की सेहत बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है और वे सरदर्द और पाचन तंत्र की गड़बड़ियों के कारण दम तोड़ रहे हैं।
कजाख सरकार को जब रूस से स्वतंत्रता मिली तो उन्होंने अपने हिस्से के सागर पर काम करना शुरू किया। राष्ट्रपति नजरबायेव के नेतृत्व में बालू के चेकडैम तोड़ दिये गये और अब दोनों सागर एक दूसरे से पुनः मिल चुके हैं। मछलियों की वापसी हो गई है, पानी की गुणवत्ता में भी सुधार है लेकिन पूरा अरल बेसिन क्षेत्र कई सौ स्क्वायर किमी सिकुड़ चुका है। लोकल अर्थव्यवस्था करीब 100 साल पीछे चली गयी है और पूरा क्षेत्र पलायनवादी हो चुका है। पुरानी मशीनों और कारखानों के अवशेषों के अलावा वहाँ अब कुछ नहीं बचा है।
कल आपने सुना होगा कि अंटार्कटिका की करीब 300 ट्रिलियन टन भार वाली आइस शीट पिघल चुकी है और इसने समुद्र का स्तर 7.4 मिमी बढ़ा दिया है। जिस दिन पूरा अंटार्कटिका पिघल गया, समुद्र स्तर 58 मीटर ऊपर उठ जाएगा। अभी नहीं होगा लेकिन अगले 500 साल में यह सब संभव है क्योंकि ये सब हमारे सामने पिछ्ले 60 सालों में ही हुआ है। अंटार्कटिका का केस तो मात्र 26 साल पुराना है।
बहरहाल तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात आज कुनलुन नहर की वजह से आबाद है और आप वहाँ विकास की नई इबारत, प्रकृति की कीमत पर लिखी, पढ़ सकते हैं।
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