अब तक सारे सुधीजनों को चीन के अरुणाचल प्रदेश सीमा पर खनन गतिविधियों का पता चल गया होगा। आइए कुछ जरूरी जानकारियों/मुद्दों की बात करते हैं:
1. Lhunze, जहाँ चीन ने सोना, चांदी और बहुत से दुर्लभ खनिजों का 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का भंडार खोजा है, वह सन 1959 तक भारत का हिस्सा था। 1962 कि युद्ध से पहले भी चीन भारतीय क्षेत्र पर अधिकार करता रहा है और यह क्षेत्र उसने असम राइफल्स के जवानों को खदेड़ कर हथिया लिया। उस समय भारत सरकार को अक्साई चीन जैसे इसका कुछ खास एहसास हुआ नहीं होगा लेकिन आज 60 साल बाद तस्वीर बिल्कुल उलट है।
2. चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है। 1960-70 में तिब्बत एक खास मुद्दा हुआ करता था क्योंकि चीन एक आर्थिक महाशक्ति नहीं था और अमेरिका उसे हमेशा तिब्बत के पीछे धमकाता रहता था। आज दलाई लामा खुद 'स्वायत्तता' की बात करना शुरू कर दिए हैं, नाकि 'स्वतंत्रता' की। तिब्बतियों के ऊपर राजनीति अभी भी होती है लेकिन अब दलाई लामा धर्मगुरु और तिब्बती 'चीनी' बन चुके हैं।
3. चीन ने Lhunze कॉउंटी, जोकि उसके शानान प्रान्त के हिस्सा है, वहां लोगों को बसाना शुरू कर दिया है। आज वहाँ आबादी लाखों में है जबकि हमारे अरुणाचल की जनांकिकीय सबको पता है। आगे आने वाले दिनों में वहां जब खनन गतिविधियां बढ़ेंगी, तो बड़ी कंपनियां आएंगी और उद्योग भी स्थापित होंगे। फलतः रोज़गार और आबादी दोनों बढ़ेंगे। प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के होते हुए भी यह संभव होगा और भारत ने अपनी साथ लगी सीमा पर यही सब तत्काल नहीं किया तो आगे आने वाले समय में चीन इसी बदली हुई डेमोग्राफिक के ऊपर पूरा का पूरा अरुणाचल प्रदेश हथियाने की कोशिश करेगा।
4. इस लड़ाई में विजेता कोई नहीं होगा लेकिन पराजित एक तत्व जरूर होगा और वह है हमारी प्रकृति। ब्रह्मपुत्र प्रदूषित होगी और हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र जोकि पृथ्वी का सबसे नया और इसीलिए सबसे संवेदनशील और अस्थिर निकाय है, बुरी तरह प्रभावित होंगे। भूस्खलन और भूकंप जैसी घटनाएं बढ़ेंगी और यह आर्थिक समृद्धि, चाहे भारत की हो या चीन की, जोकि 50-100 वर्षों तक अच्छी लग सकती है, एक दिन पूरे क्षेत्र के सर्वनाश का कारण बनेगी।
भारत-चीन सम्बंध हमारी विदेश नीति के मजबूत आधार स्तंभ हैं। यह विषय कहीं भी, कभी भी, किसी भी रूप में आपके सामने प्रकट हो सकता है। अतः अपनी तैयारी पड़ोसी देशों के साथ हमारे सम्बंधों पर पुख्ता रखें और अच्छी से अच्छी प्रतिक्रिया के साथ सामने आएं।
1. Lhunze, जहाँ चीन ने सोना, चांदी और बहुत से दुर्लभ खनिजों का 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का भंडार खोजा है, वह सन 1959 तक भारत का हिस्सा था। 1962 कि युद्ध से पहले भी चीन भारतीय क्षेत्र पर अधिकार करता रहा है और यह क्षेत्र उसने असम राइफल्स के जवानों को खदेड़ कर हथिया लिया। उस समय भारत सरकार को अक्साई चीन जैसे इसका कुछ खास एहसास हुआ नहीं होगा लेकिन आज 60 साल बाद तस्वीर बिल्कुल उलट है।
2. चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है। 1960-70 में तिब्बत एक खास मुद्दा हुआ करता था क्योंकि चीन एक आर्थिक महाशक्ति नहीं था और अमेरिका उसे हमेशा तिब्बत के पीछे धमकाता रहता था। आज दलाई लामा खुद 'स्वायत्तता' की बात करना शुरू कर दिए हैं, नाकि 'स्वतंत्रता' की। तिब्बतियों के ऊपर राजनीति अभी भी होती है लेकिन अब दलाई लामा धर्मगुरु और तिब्बती 'चीनी' बन चुके हैं।
3. चीन ने Lhunze कॉउंटी, जोकि उसके शानान प्रान्त के हिस्सा है, वहां लोगों को बसाना शुरू कर दिया है। आज वहाँ आबादी लाखों में है जबकि हमारे अरुणाचल की जनांकिकीय सबको पता है। आगे आने वाले दिनों में वहां जब खनन गतिविधियां बढ़ेंगी, तो बड़ी कंपनियां आएंगी और उद्योग भी स्थापित होंगे। फलतः रोज़गार और आबादी दोनों बढ़ेंगे। प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के होते हुए भी यह संभव होगा और भारत ने अपनी साथ लगी सीमा पर यही सब तत्काल नहीं किया तो आगे आने वाले समय में चीन इसी बदली हुई डेमोग्राफिक के ऊपर पूरा का पूरा अरुणाचल प्रदेश हथियाने की कोशिश करेगा।
4. इस लड़ाई में विजेता कोई नहीं होगा लेकिन पराजित एक तत्व जरूर होगा और वह है हमारी प्रकृति। ब्रह्मपुत्र प्रदूषित होगी और हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र जोकि पृथ्वी का सबसे नया और इसीलिए सबसे संवेदनशील और अस्थिर निकाय है, बुरी तरह प्रभावित होंगे। भूस्खलन और भूकंप जैसी घटनाएं बढ़ेंगी और यह आर्थिक समृद्धि, चाहे भारत की हो या चीन की, जोकि 50-100 वर्षों तक अच्छी लग सकती है, एक दिन पूरे क्षेत्र के सर्वनाश का कारण बनेगी।
भारत-चीन सम्बंध हमारी विदेश नीति के मजबूत आधार स्तंभ हैं। यह विषय कहीं भी, कभी भी, किसी भी रूप में आपके सामने प्रकट हो सकता है। अतः अपनी तैयारी पड़ोसी देशों के साथ हमारे सम्बंधों पर पुख्ता रखें और अच्छी से अच्छी प्रतिक्रिया के साथ सामने आएं।
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