यह कहना जरूरी हो गया था। कुछ लोग आजकल कथित 'हिन्दू नाजीवाद' से काफी आक्रांत दिख रहे और संघ उनके अनुसार हिटलर के 'एस एस' जैसा बर्ताव कर रहा। मैं मेजोरिटी से हूँ, हो सके मेरी दृष्टि से वह सब कुछ नहीं दिखता जोकि बाकी माइनॉरिटी को तब भी संघ को बखूबी जानता हूँ। उनका एक एजेंडा है, लेकिन यह कहना कि वे उसे लेकर हिंसक हैं या आक्रामक, निरा मूर्खता है। यह स्थिति बहुत दुखी करती है और यहाँ संघ का बचाव नहीं कर रहा। संघ की आड़ में जो हिन्दू धर्म को गाली दे रहे, इसकी भर्त्सना कर रहे, उससे मन व्यथित हो जाता है। उदारवाद क्या है? यही ना कि आप खुले मन से सारे विचारों को आत्मसात करें। इसमें आपके विरोधी मत भी शामिल हो सकते हैं। लेकिन पढ़े-लिखे विद्वान जब एक दूसरे की लानत-मलानत करते रहते हैं और इस बात का ध्यान रखें कि ऐसी बहसों में कोई नहीं जीतता तो मुझे ऐसे छद्म उदारवाद पर हंसी आती है।
मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि मैं उदारवादी 'नहीं' हूँ। मुझे विरोधी खेमे की ना पचाये जा सकनी वाली बातें सही नहीं लगती लेकिन समाज के प्रति अपने कर्तव्य और अपनी छवि के अनुसार मैं मुखर नहीं हो सकता लेकिन क्या मैं इस आड़ में सहिष्णु बना रह सकता हूँ, कदापि नहीं। और मेरे जैसे वो सारे कथित विद्वान भी। लेकिन फिर कह रहा कि हम सब आम इंसान हैं, वोट बैंक जिन्हें राजनीति से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। आप जोक बनाइये, हंसिये अपने राजनीतिक परिदृश्य पर लेकिन किसी का पक्ष लेना और उनका पुरजोर समर्थन करना और फिर विरोधियों को शांत करना एक श्रमसाध्य कार्यक्रम है जिसके लिए बहुत सारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अगर आपके पास समय है, ऊर्जा है और मनोरंजन के अन्य साधन नहीं हैं तो इस कार्यक्रम में पूरी तरह तल्लीन रहें। और अगर आप साधनविहीन हैं तो अपने आम इंसानों वाली समस्याओं के निराकरण में लग जाएं।
अंत में याद रखें कि आप उदारवादी 'नहीं' हैं।
मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि मैं उदारवादी 'नहीं' हूँ। मुझे विरोधी खेमे की ना पचाये जा सकनी वाली बातें सही नहीं लगती लेकिन समाज के प्रति अपने कर्तव्य और अपनी छवि के अनुसार मैं मुखर नहीं हो सकता लेकिन क्या मैं इस आड़ में सहिष्णु बना रह सकता हूँ, कदापि नहीं। और मेरे जैसे वो सारे कथित विद्वान भी। लेकिन फिर कह रहा कि हम सब आम इंसान हैं, वोट बैंक जिन्हें राजनीति से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। आप जोक बनाइये, हंसिये अपने राजनीतिक परिदृश्य पर लेकिन किसी का पक्ष लेना और उनका पुरजोर समर्थन करना और फिर विरोधियों को शांत करना एक श्रमसाध्य कार्यक्रम है जिसके लिए बहुत सारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अगर आपके पास समय है, ऊर्जा है और मनोरंजन के अन्य साधन नहीं हैं तो इस कार्यक्रम में पूरी तरह तल्लीन रहें। और अगर आप साधनविहीन हैं तो अपने आम इंसानों वाली समस्याओं के निराकरण में लग जाएं।
अंत में याद रखें कि आप उदारवादी 'नहीं' हैं।
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