पिछले कुछ समय से हम लोग देश विदेश के समसामयिक घटनाक्रम और ज्वलंत मुद्दों पर बात कर रहे हैं। इसी दौरान जल संरक्षण की बात हुई थी और यह भी कि हमारे समुद्रों में पूरी उपलब्ध जलराशि का 98% जल है तो उनका अलवनिकरण करके उसका उपयोग क्यों ना किया जाए या किस प्रकार किया जाए? इसके ऊपर कुछ अध्ययन किया तो पता चला कि चेन्नई में पहले से ही दो प्लांट्स काफी अच्छे से काम कर रहे और दो और जल्द ही शुरू होने वाले हैं जो अगले वर्ष तक चेन्नई की रोज़मर्रा की जल जरूरतों का 50% भार उठा सकेंगे। अभी बिजली खर्च सबसे बड़ी चुनौती है इन प्लांट्स की लेकिन कुछ समय बाद सोलर एनर्जी वगैरह का इस्तेमाल करके इस चुनौती पर काबू कर लिया जाएगा। साथ मे, गुजरात मे भी ऐसे ही प्लांट्स लग रहे। विश्व की बात की जाए तो 150 से ज्यादा देशों में 18,000 ऐसे प्लांट्स हैं जो बिल्कुल स्वच्छ और स्वस्थ जल लोगों तक पहुंचा रहे हैं। अभी लागत ऊंची है विभिन्न कारणों से लेकिन यह बहुत जल्द ही आम इंसान की पहुंच में आ जायेगी।
यह बात हुई फ्रेश वाटर के संरक्षण और प्रयोग की और अब बात होगी उस पानी की जिसका हम उपयोग करके उसे गंदा करके सीवेज में बदल देते हैं। नीदरलैंड सरकार और भारत सरकार इस समस्या पर मिलकर काम करना शुरू कर दिए हैं। एक प्रोजेक्ट शुरू हुआ है 'लोटस एच आर' (LOTUS HR) के नाम से और IIT दिल्ली भी इसमें सहभागी है। दिल्ली में सराय काले खाँ में बायपुल्लाह नाला है जो भारत के सबसे गंदे नालों में से एक है। हमने यह चुनौती स्वीकार की है कि अगर इस नाले के पानी को हमने इस्तेमाल लायक बना लिया तो सब कुछ संभव हो सकेगा। कारण: इस नाले में परम्परागत गंदगियों के अलावा फार्मा सेक्टर के अपशिष्ट और पर्सनल केअर प्रोडक्ट्स के अपशिष्ट भी गिरते हैं। इनके कुछ नैनोग्राम्स के अवशेष भी कैंसरकारक हो सकते हैं और हमारे पूरे पाचन तंत्र की गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित्त कर सकते हैं।
अभी हमारे पास सीवेज ट्रीटमेंट की मात्र 13% क्षमता मौजूद है और 87% सीवेज समुचित प्रबंधन के अभाव में खराब हो जाता है। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो आगे आने वाले समय में नदियों को स्वच्छ रखने की चुनौती पर भी पार पाया जा सकेगा। जल संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। अगर इस प्रोजेक्ट को हमारे लोकसेवकों की इच्छाशक्ति का संबल मिल गया तो यह निस्संदेह पूरे विश्व के लिए एक 'गेम-चेंजर' साबित हो सकेगी।
जिन अभ्यर्थियों को इस घटनाक्रम से संबंधित विषय पर निबंध इत्यादि लिखने हों, वे यहाँ से अपने मतलब की सूचना ग्रहण कर सकते हैं।
यह बात हुई फ्रेश वाटर के संरक्षण और प्रयोग की और अब बात होगी उस पानी की जिसका हम उपयोग करके उसे गंदा करके सीवेज में बदल देते हैं। नीदरलैंड सरकार और भारत सरकार इस समस्या पर मिलकर काम करना शुरू कर दिए हैं। एक प्रोजेक्ट शुरू हुआ है 'लोटस एच आर' (LOTUS HR) के नाम से और IIT दिल्ली भी इसमें सहभागी है। दिल्ली में सराय काले खाँ में बायपुल्लाह नाला है जो भारत के सबसे गंदे नालों में से एक है। हमने यह चुनौती स्वीकार की है कि अगर इस नाले के पानी को हमने इस्तेमाल लायक बना लिया तो सब कुछ संभव हो सकेगा। कारण: इस नाले में परम्परागत गंदगियों के अलावा फार्मा सेक्टर के अपशिष्ट और पर्सनल केअर प्रोडक्ट्स के अपशिष्ट भी गिरते हैं। इनके कुछ नैनोग्राम्स के अवशेष भी कैंसरकारक हो सकते हैं और हमारे पूरे पाचन तंत्र की गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित्त कर सकते हैं।
अभी हमारे पास सीवेज ट्रीटमेंट की मात्र 13% क्षमता मौजूद है और 87% सीवेज समुचित प्रबंधन के अभाव में खराब हो जाता है। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो आगे आने वाले समय में नदियों को स्वच्छ रखने की चुनौती पर भी पार पाया जा सकेगा। जल संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। अगर इस प्रोजेक्ट को हमारे लोकसेवकों की इच्छाशक्ति का संबल मिल गया तो यह निस्संदेह पूरे विश्व के लिए एक 'गेम-चेंजर' साबित हो सकेगी।
जिन अभ्यर्थियों को इस घटनाक्रम से संबंधित विषय पर निबंध इत्यादि लिखने हों, वे यहाँ से अपने मतलब की सूचना ग्रहण कर सकते हैं।
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