एक जमाना हुआ करता था जब भारत यह सोचता था कि चूंकि हिन्द महासागर का नाम हिन्द महासागर है तो वह इनका है या कम से कम ये निर्णय लेंगे कि इसका क्या करना है या इसमें क्या होगा। आज से दो-तीन साल पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भी यही लगता था कि चूंकि दक्षिणी प्रशांत महासागर में स्थित ये दो देश सबसे प्रभुत्व वाले हैं तो यही इसके भाग्य विधाता हैं। तो यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन ने इन तीनों देशों की गफलत को दूर कर दिया है। इन तीनों देशों के पास ऐसा कहने सोचने का कोई हक भी नहीं है। आज भारत सागरीय क्षेत्र की संप्रभुता की बात बड़ी मजबूती से सामने रखता है लेकिन यह तब हो रहा जब चीन जिबूती, ग्वादर और हम्बनटोटा में अपने मिलिट्री बेस/पत्तन तैयार कर चुका है। इन तीनों राष्ट्रों ने यह समझने में अच्छी खासी देर लगा दी कि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और चूंकि अब उसकी घरेलू व्यवस्था और प्रशासन सुदृढ़ है, वह जरूर एक वैश्विक महाशक्ति बनने का प्रयास करेगा। आप किसी संप्रभु राष्ट्र की विदेश नीति में हस्तक्षेप तब तक ही कर सकते हैं जब तक कि उसकी स्थिति आपसे मजबूत ना हो। चीन इन तीनों राष्ट्रों से मजबूत है और अब अपने मन की कर रहा है।
दक्षिण प्रशांत महासागर में छोटे-छोटे देश बसे हुए हैं। वानुअतु, नॉरू, सोलोमन आइलैंड, पापुआ न्यू गिनी जैसे द्वीपीय राष्ट्र वहाँ उपस्थित हैं। वानुअतु में चीन ने अभी हम्बनटोटा जैसी कुछ व्यवस्था करने की कोशिश की और सौभाग्य से कैनबेरा को इसकी भनक लग गयी। हुआवेई ने अभी एक अंडर सी केबल से कैनबेरा, पापुआ न्यू गिनी और सोलोमन आइलैंड को इंटरनेट द्वारा जोड़ने का प्रोजेक्ट प्लान किया जिसे ऑस्ट्रेलिया ने समझदारी से ज्यादा खर्चे वाला प्रोजेक्ट बताके कैंसिल कर दिया। देर से ही सही, कैनबेरा और वेलिंगटन चीन की 'कर्ज़ कूटनीति' को समझ लिए हैं और अब इन द्वीपीय राष्ट्रों के साथ मिलकर क्षेत्रीय समृद्धि, संप्रभुता और शांति की ओर कदम बढ़ाने का फैसला लिए हैं ताकि ये किसी के प्रलोभन में ना फंसे। लेकिन चीन भी पीछे नहीं रहने वाला और नवंबर में APEC समिट के तुरंत बाद राष्ट्रपति जिनपिंग इन द्वीपीय राष्ट्रों के प्रमुखों के साथ नॉरू में मिलेंगे। असली कूटनीति की शुरुआत और परीक्षा अब शुरू होगी और अगर भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अभी भी अपनी भलमनसाहत से इन द्वीपीय राष्ट्रों को अपने पाले में खड़े नहीं कर सके तो सम्पूर्ण हिन्द महासागर का अगला प्रमुख निस्संदेह चीन होगा और इस उपलब्धि से फिर किसी को कभी भी, कोई भी गफलत भी नहीं रहेगी।
दक्षिण प्रशांत महासागर में छोटे-छोटे देश बसे हुए हैं। वानुअतु, नॉरू, सोलोमन आइलैंड, पापुआ न्यू गिनी जैसे द्वीपीय राष्ट्र वहाँ उपस्थित हैं। वानुअतु में चीन ने अभी हम्बनटोटा जैसी कुछ व्यवस्था करने की कोशिश की और सौभाग्य से कैनबेरा को इसकी भनक लग गयी। हुआवेई ने अभी एक अंडर सी केबल से कैनबेरा, पापुआ न्यू गिनी और सोलोमन आइलैंड को इंटरनेट द्वारा जोड़ने का प्रोजेक्ट प्लान किया जिसे ऑस्ट्रेलिया ने समझदारी से ज्यादा खर्चे वाला प्रोजेक्ट बताके कैंसिल कर दिया। देर से ही सही, कैनबेरा और वेलिंगटन चीन की 'कर्ज़ कूटनीति' को समझ लिए हैं और अब इन द्वीपीय राष्ट्रों के साथ मिलकर क्षेत्रीय समृद्धि, संप्रभुता और शांति की ओर कदम बढ़ाने का फैसला लिए हैं ताकि ये किसी के प्रलोभन में ना फंसे। लेकिन चीन भी पीछे नहीं रहने वाला और नवंबर में APEC समिट के तुरंत बाद राष्ट्रपति जिनपिंग इन द्वीपीय राष्ट्रों के प्रमुखों के साथ नॉरू में मिलेंगे। असली कूटनीति की शुरुआत और परीक्षा अब शुरू होगी और अगर भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अभी भी अपनी भलमनसाहत से इन द्वीपीय राष्ट्रों को अपने पाले में खड़े नहीं कर सके तो सम्पूर्ण हिन्द महासागर का अगला प्रमुख निस्संदेह चीन होगा और इस उपलब्धि से फिर किसी को कभी भी, कोई भी गफलत भी नहीं रहेगी।
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