जर्मनी दक्षिण कोरिया से हारकर विश्व कप के ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गया। जर्मनी डिफेंडिंग वर्ल्ड चैंपियन था और अच्छी फॉर्म में भी लेकिन पहले मेक्सिको और बाद में कोरिया ने उन्हें सरप्राइज कर दिया। जर्मन इतना खराब खेले भी नहीं थे लेकिन सामने वाली टीम्स जरूर उनसे बीस साबित हुईं। ज़ाहिर सी बात है कुछ खिलाड़ियों के ऊपर इस निराशाजनक प्रदर्शन का दोष मढ़ा गया। मेसुत ओज़िल, जोकि तुर्किश मूल के जर्मन खिलाड़ी हैं और प्रीमियर लीग में आर्सेनल के लिए खेलते हैं, के प्रदर्शन को इसका सर्वप्रमुख कारण बताया गया। ओज़िल इस घटनाक्रम से बेहद आहत होकर इंटरनेशनल फुटबॉल से संन्यास ले लिए। ओज़िल का मैं बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। वह एक बेहद उम्दा खिलाड़ी, इंसान और रोल मॉडल हैं। जर्मन फुटबॉल फेडरेशन ने ना केवल उनके खेल को निशाना बनाया बल्कि उनकी तुर्किश एथनिसिटी, उनका वर्ल्ड कप से पहले तुर्की राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान से मिलना और उन्हें राइट विंग समर्थक और कट्टर मुसलमान बताना ओज़िल को नागवार गुजरा। उन्होंने कहा कि जब वह गोल किया करते थे तो जर्मनी को उनसे कोई समस्या नहीं थी लेकिन जब उनकी फॉर्म खराब हुई तो उन्हें मुसलमान और बिना कामकाज का खिलाड़ी बताया जाने लगा। वह मात्र 29 वर्ष के हैं।
मिस्र के मिडफील्डर मोहम्मद सालाह इस समय रोनाल्डो और मेस्सी के बाद दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर हैं। वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले उनके फेडरेशन ने टीम को चेचेन्या में ठहराया और वहाँ वे चेचेन्या के अलगाववादी नेता से मिले। विश्व मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता से कवर किया और यह प्रचारित किया कि एक मुसलमान होने के नाते सालाह और उनका देश चेचेन्या को अपना समर्थन देते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि सालाह रूस केवल फुटबॉल खेलने गए थे और अपनी फेडरेशन की आज्ञा/प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे। इस प्रकरण से सालाह इतना दुखी हुए कि उन्होंने यह धमकी तक दे डाली कि वह मिस्र से खेलना छोड़ भी सकते हैं।
यूरोप उदारवादी हुआ करता था लेकिन आज का यूरोप प्रवासी समस्याओं से दो चार हो रहा है। कुछ अमीर देश जैसे कि फ्राँस, जर्मनी और इटली प्रवासियों को अपने यहाँ शरण देते हैं और इस परंपरा के हिमायती हैं लेकिन बाकी इसके खिलाफ हैं। फिर जर्मनी का उदाहरण आपने ऊपर देख ही लिया। रूस कितना उदारवादी है, वह भी आप जानते हैं। फ्रांस की टीम में 9 खिलाड़ी अफ्रीकी मूल के थे और आपको यह जानकर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका एक समय फ्रांस का उपनिवेश हुआ करता था और अल्जीरिया, मोरक्को, रवांडा, सेनेगल फ्रांकोफोन देश (फ्रेंच बोलने वाले देश) हैं। फ्रांस कम से कम इतना उदारवादी है कि अपनी पुरानी कॉलोनियों से खिलाड़ियों को अपने यहाँ खेलने की अनुमति देता है। कई लोगों ने ट्विटर पर फ्राँस की जीत को अफ्रीका की जीत बताया था, आपने नोटिस किया होगा।
इस्लामिक आतंकवाद, कट्टरता और यूरोप का छद्म उदारवाद आज के विश्व की कड़वी सच्चाईयाँ हैं। इसकी आड़ में कुछ बेहद अच्छे लोगों को निशाना बनाया जाना बेहद निराशाजनक है।
मिस्र के मिडफील्डर मोहम्मद सालाह इस समय रोनाल्डो और मेस्सी के बाद दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर हैं। वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले उनके फेडरेशन ने टीम को चेचेन्या में ठहराया और वहाँ वे चेचेन्या के अलगाववादी नेता से मिले। विश्व मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता से कवर किया और यह प्रचारित किया कि एक मुसलमान होने के नाते सालाह और उनका देश चेचेन्या को अपना समर्थन देते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि सालाह रूस केवल फुटबॉल खेलने गए थे और अपनी फेडरेशन की आज्ञा/प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे। इस प्रकरण से सालाह इतना दुखी हुए कि उन्होंने यह धमकी तक दे डाली कि वह मिस्र से खेलना छोड़ भी सकते हैं।
यूरोप उदारवादी हुआ करता था लेकिन आज का यूरोप प्रवासी समस्याओं से दो चार हो रहा है। कुछ अमीर देश जैसे कि फ्राँस, जर्मनी और इटली प्रवासियों को अपने यहाँ शरण देते हैं और इस परंपरा के हिमायती हैं लेकिन बाकी इसके खिलाफ हैं। फिर जर्मनी का उदाहरण आपने ऊपर देख ही लिया। रूस कितना उदारवादी है, वह भी आप जानते हैं। फ्रांस की टीम में 9 खिलाड़ी अफ्रीकी मूल के थे और आपको यह जानकर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका एक समय फ्रांस का उपनिवेश हुआ करता था और अल्जीरिया, मोरक्को, रवांडा, सेनेगल फ्रांकोफोन देश (फ्रेंच बोलने वाले देश) हैं। फ्रांस कम से कम इतना उदारवादी है कि अपनी पुरानी कॉलोनियों से खिलाड़ियों को अपने यहाँ खेलने की अनुमति देता है। कई लोगों ने ट्विटर पर फ्राँस की जीत को अफ्रीका की जीत बताया था, आपने नोटिस किया होगा।
इस्लामिक आतंकवाद, कट्टरता और यूरोप का छद्म उदारवाद आज के विश्व की कड़वी सच्चाईयाँ हैं। इसकी आड़ में कुछ बेहद अच्छे लोगों को निशाना बनाया जाना बेहद निराशाजनक है।
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